फ़ैसला आप कीजिये
एक बरसों पुरानी कहानी आपके साथ सांझा कर रही हूँ; परन्तु प्रासंगकिता आज भी है/
एक गांव में एक कुम्हार बरसों से अपना पुश्तैनी धंधा कर रहा था / वह माटी को घड़ता था और चिलम का रूप देता था/ गांव से राहगीर जब गुज़रते , उसके घर के बाहर लगे, एक विशाल वृक्ष की छाया में कुछ पल सुस्ताने के लिए रुक जाते/ चिलम भरते और हुक़्क़ा गुड़गुड़ाते / कुछ कश लेते और तरोताज़ा महसूस करते हुए, अपनी राह पकड़ लेते/
एक साधु ने कुछ दिनों के लिए गांव में डेरा डाल लिया/ वह अक़्सर देखता की राहगीर आते हैं, पेड़ की शीतल छाया में सुस्ताते है, कुम्हार से चिलम लेते हैं , चिलम भरने के बाद, हुक्के से कुछ कश लेते है और सुकून महसूस करते हुए , आगे रवाना हो जाते हैं/
साधु एक दिन उस कुम्हार के पास गया और उस से पूछा तुम मिट्टी से चिलम ही क्यों बनाते हो, कुछ और क्यों नहीं / कुम्हार ने विनीत भाव से उत्तर दिया, " मैंने तो बचपन से ही अपने बाप-दादा को चिलम बनाते हुए ही देखा है और मैं इसी पुश्तैनी धंधे को आगे बढ़ा , अपनी रोज़ी रोटी का जुगाड़ कर रहा हूँ/ राहगीर भी चिलम से कश लगाकर अपनी थकावट मिटा लेते हैं ,तो मुझे अच्छा लगता है/
साधु ने कहा, "अगर तुम मेरी सलाह मानो तो चिलम की बजाय, सुराही बनाना शुरू कर दो/ राहगीर जब पेड़ की छाया में सुस्ताने रुकें , तो उन्हें सुराही बेचो/ शीतल जल से प्यास बुझाकर उन्हें संतुष्टि मिलेगी/ और तुम्हारी आजीविका का साधन भी हो जाएगा/''
कुम्हार से साधु की सलाह मानते हुए, सुराही बनाना शुरू कर दिया/ बिक्री भी अच्छी ख़ासी होने लगी/
एक रात कुम्हार की नींद खुली, तो उसने अपने बाड़े से किसी के खिलखिलाने की आवाज़ सुनी / उत्सुकता वश उस ओर गया तो देखा कि सुराही खिलखिला कर हँस रही है/ कुम्हार से पूछा ," तुम किस बात पर इतनी हँसी आ रही है?'
सुराही बोली," मैं अपने इस रूप से बहुत खुश हूँ/ मेरा तन मन शीतल है/ मिट्टी तो मैं वहीँ हूँ; परन्तु तुम पहले मुझे चिलम का आकार देते थे / मेरा उपयोग करने वाले इसमें आग भरते थे/ मेरा सीना तो सुलगता ही था, चिलम पीने वालों के सीने में भी जलन मचती थी/ अब मुझ में शीतल जल भरा जाता है; मेरे सीने में तो ठंडक है ही, इस शीतल जल का उपभोग करने वाले को भी शीतलता मिलती है/ इस नए रूप के लिए , मैं तुम्हारी आभारी हूँ/'
कुम्हार भी इस उत्तर से बहुत खुश हुआ और साधु का आभार माना उचित मार्गदर्शन के लिए/
अब आप ही फैसला कीजिए/ कच्ची माटी को क्या रूप देने में सार्थकता है/
@ रजनी छाबड़ा
30 /10 /2025
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