Monday, January 18, 2010

basant

बसंत


वक़्त ने

जिन घावों पर

थी मरहम लगाई

मौसम ने उन्ही को

हरा करने की

रस्म दोहराई

मेरी पीड़ा का

न आदि है

न अंत

मुरझाये हुए

जख्मों का

फिर से हरा होना

बस यही है

मेरा बसंत