Wednesday, August 3, 2022

तुम्हारी वसीयत

तुम्हारी वसीयत 

सहेज कर रखूँगी 
वतन की आन की ख़ातिर 
जो शौर्य की वसीयत 
तुम मेरे नाम कर गए 


मुस्कुरा कर सहूँगी 
वक़्त का हर सितम 
देशभक्ति का ज़बा 
कभी न होगा  कम 


शहादत के जो फूल 
डाले तुमने मेरे आँचल में 
उनकी खुशबू से
 महकेगा वतन 


मैं ही जीजाबाई 
मैं ही अमर सिंह राठौड़ की माँ 
लोरी की जगह 
सुनाऊँगी बेटों को 
शहादत की दास्तान 


फिर से आँच आई 
ग़र देश की आन पर 
और माँगा 
धरती माँ ने बलिदान 
वतन की शान पर 
कर दूँगी हॅंसते हॅंसते 
अपने लाडले क़ुर्बान 


जो जान देते हैं 
वतन की राह पर 
छोड़ जाते हैं 
क़ुरबानी के 
नक़्श-ए -पाँ 
जिन पर चल कर 
नयी पीढी रखती क़ायम 
आज़ाद वतन, आज़ाद जहान 


रजनी छाबड़ा