Thursday, January 23, 2025

हेक गुमशुदा औरत

हेक गुमशुदा औरत 

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शिक़वा नहि परायां नाल 

मैडे अपणेइयाँ ने ही ख़स घिदी  

मैडे तुं मैडी आपणी पछाण 


धी , नुं , कवार , माँ 

इंहा, रिश्तियाँ  वेच गुमीया 

मैडा मैं किथे 


कल राह चलदे सदिया मैंकु 

बचपन दी हाणी ने जद सदिया मैडा नां 

खुलण लगे बंद यादां दे झरोखें 

धुप छणी किरणाँ वेच उभरइया 

धुँधला धुँधला जिहा मैडा नां 


मैं वी कदी मेँ सी 

माँ -बाबुल दी सोनचिड़ी 

जोश, ख़ुशी नाल भरपूर 

उडदी राहँदी घर, चौबारे 

पेंड दी गलियां वेच दूर दूर 


मैडी आज़ादी दे किस्से थए मशहूर  

किरक वरगी चुभण लग पई 

रिश्तेदारां दी नज़रां वेच 

मैडी पंख पसारी आज़ादी 


मशवरा दिता गया, मैडे पंख नोचण दा 

खूबसूरत बहांनियाँ वेच उलझा के 

करवा दिति गयी कच्ची उमर वेच 

मैडी शादी  


पढ़ाई लिखाई बन के रह गयी ख़्वाब 

समझाया गया मैंकु 

घर दी सेवा करण वेच ही हे मेडा सवाब 

जद तक सुती रई अपणी पहचान दी चाह 

तद तक कुझ साल रही गृहस्थी विच ख़ुश 


हुण बच्चे अपणी ज़िंदगी वेच रमे 

घोट कुं नयि कामकाज तुं फुर्सत 


बलदी रेत वरगा मन मेरा 

हर पल सुलगदा 

तपदे रेगिस्तान वेच 

ख़ाली मटके वरगा मैडा मन 

तलाशदा फ़िरदा

रुंज वेच मैडी पहचान 


मैं फलाणे दी धी, फैलाने दी नुं 

फलाणे दी कवार ते फलाणे दी मां 

इना रिशताएँ दे  वाझालोरे वेच

किथे हां मैं 


कया शिक़वा करान गैरां नाल 

मैडे आपणयां ने ही खस  घिधी 

मैडे तुं मैडी पहचान /


रजनी छाबड़ा 



पुल

 पुल 

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इंसान इंसान दे वेच 

हेक अजनबीपन जीया क्यूँ हे 

क्यूँ समेटे रखदे हाँ, असां अपणे आप कुं 

आपणे ही बणाएं क़िले वेच 

बणा घिन्दे हां ,आपणे आले दुवाले 

कछुवे जीहा हेक सुऱक्षा कवच 

ख़ौफ़ ते बेइतबारी नाल भरे 

सहमे सहमे , डरे डरे 

ज़रा जही अनजान आवाज़ सुणदे ही 

सिमट वेंदे हाँ ऊस कवच वेच 


हेक वार , सैर्फ  हेक वार 

कर वनजो पार,बेइतबारी दी दीवार 

गैरां दे सुःख दुःख साँझा कर 

ढहा सटो दूरीयां दी दीवार 


तुसां ओ  एंट बण के वेखौ 

जेहढ़ी दीवार वेच नहिय 

पुल वेच चिणी वैसी 

ज़िंदगी डा वल , तुहानकु 

आपो आप आ वैसी /


रजनी छाबड़ा 

घर

 घर 

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पियार ते अपणापां 

जदूं दीवारां दी 

छत बण वैंदा हे 


ओ मक़ान 

घर अखवांदा हे/


रजनी छाबड़ा  


फैशन


फैशन 

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जे जिसम दी नुमाईश ही 

फैशन हे 

असां  डाढे अभागे हां 


जानवर ऐस दौड़ वेच 

असां तुं अवल्ल निकल गए/


रजनी छाबड़ा 


नवीं पछाण

 

नवीं पछाण 

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अँधेरे कु 

आपणे आप  वेच समेटे 

जिवें दीवा बणांदा हे 

अपनी रोशन पछाण 



ईवेन ही  तुसा 

अथरू समेटे रखो 

अपणे वेच 

दुनिया कु डियो 

बस मुसकान  



आपणी अनाम ज़िंदगी कुं 

ईवेन डियो नवीं पछाण /


रजनी छाबड़ा 

आज़ाद

 आज़ाद 

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झरने वांकु कलकल 

पंछियां वांकु चहक 

आज़ाद उडारी 

चंदनी हवा 

सावणी फ़ुहार 

इहो टैडी 

हँसी दी पछाण 



मोतियाँ वाले घर दा 

दरवाज़ा खोल चा 

नक़ली  मुलकना  

छोड़ चा/


रजनी छाबड़ा 



आस दा पंछी

आस दा पंछी 

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मन 

हेक आस दा पंछी 

न क़ैद करो हिंकु 

क़ैद थीवण वास्ते 

किया इंसान दा ज़िस्म  

घट हे/


रजनी छाबड़ा