शुभकामनाएँ
सादर आभार आपका।
आपसे परिचय ही असाधारण बात होती, मित्रता तो मेरा परम सोभाग्य है।
आप अनुभूति, संवेदना के स्तर पर दृश्य भाव बिम्ब को जीती, तदुपरांत सबकुछ शब्दों में जीवंत होता है: नहीं तो भला हिमखंड के पिघलने का एहसास कहाँ!
महामारी से आक्रांत शरीर होता है, फिर भी आप मृत्यु से संवाद करती हैं।
आज स्व-प्रशंसा स्वाभाविक प्रचलन हो गया हैं और आप यहाँ भी अनुवादक, प्रकाशक, संपादक व सभी सहयात्रियों का कृतज्ञाभाव से उल्लेख करती हैं: कृतज्ञाभाव से जीने वालों की संभावनाओं की इतिश्री नहीं होती।
यही प्रार्थित है कि आपकी रचना यात्रा अहर्निश जीवंत रहे।
अनंत हार्दिक शुभकामनाएँ निवेदित हैं
Ram Sharan Agarwal