गुलज़ार
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सूखे चरमराये फूल पत्ते
जो रौंदे जा रहे हैं
सब के पाँव तले
रौनक थी इनसे भी कभी
गुलज़ार की,
सुकून मिलता था किसी को
इनके साए तले
रजनी छाबड़ा
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सूखे चरमराये फूल पत्ते
जो रौंदे जा रहे हैं
सब के पाँव तले
रौनक थी इनसे भी कभी
गुलज़ार की,
सुकून मिलता था किसी को
इनके साए तले
रजनी छाबड़ा
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