कहाँ गए
कहाँ गए सुनहरे दिन
जब बटोही सुस्ताया करते थे
पेड़ों की शीतल छाँव मैं
कोयल कूकती थी
अमराइयों मैं
सुकून था गावँ में
कहाँ गए संजीवनी दिन
जब नदियां स्वच्छ शीतल
जलदायिनी थी
शुद्ध हवा मैं सांस लेते थे हम
हवा ऊर्जा वाहिनी थी
रजनी छाबड़ा
कहाँ गए सुनहरे दिन
जब बटोही सुस्ताया करते थे
पेड़ों की शीतल छाँव मैं
कोयल कूकती थी
अमराइयों मैं
सुकून था गावँ में
कहाँ गए संजीवनी दिन
जब नदियां स्वच्छ शीतल
जलदायिनी थी
शुद्ध हवा मैं सांस लेते थे हम
हवा ऊर्जा वाहिनी थी
रजनी छाबड़ा
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