हम जिंदगी से क्या चाहते हैं
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हम खुद नहीं जानते
हम जिंदगी से क्या चाहते हैं
कुछ कर गुजरने की चाहत मन में लिए
अधूरी चाहतों में जिए जाते हैं
उभरती हैं जब मन में
लीक से हटकर ,कुछ कर गुजरने की चाह
संस्कारों की लोरी दे कर
उस चाहत को सुलाए जाते हैं
सुनहली धूप से भरा आसमान सामने हैं
मन के बंद अँधेरे कमरे में सिमटे जाते हैं
चाहते हैं ज़िन्दगी में सागर सा विस्तार
हकीकत में कूप दादुर सा जिए जाते हैं
चाहते हैं ज़िन्दगी में दरिया सी रवानी
और अश्क आँखों में जज़्ब किये जाते हैं
चाहते हैं जीत लें ज़िन्दगी की दौड़
और बैसाखियों के सहारे चले जाते हैं
कुछ कर गुजरने की चाहत
कुछ न कर पाने की कसक
अजीब कशमकश में
ज़िंदगी जिए जाते हैं
हम खुद नहीं जानते
हम ज़िन्दगी से क्या चाहते हैं
रजनी छाबड़ा
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