Friday, January 29, 2010

kyon

क्यों सुलगता रहता है

हर पल,मन मेरा

आसूं भी

इस आग को

पानी देने में

नाकाम है

क्या मृगतृष्णा सी

चाहतों का

यहीं अंजाम है


रजनी छाबड़ा

Wednesday, January 27, 2010

yaadon ke jhrokhe se

यादों के झरोखे से
============

तेरी यादों के झरोखे से

जब धुप छनी किरणें

आती हैं

दो पल को ही सही

अँधेरे में उजाले का भ्रम

जगा जाती हैं

Monday, January 18, 2010

basant

बसंत


वक़्त ने

जिन घावों पर

थी मरहम लगाई

मौसम ने उन्ही को

हरा करने की

रस्म दोहराई

मेरी पीड़ा का

न आदि है

न अंत

मुरझाये हुए

जख्मों का

फिर से हरा होना

बस यही है

मेरा बसंत


Sunday, January 17, 2010

पक्षपात

पक्षपात
======

दोष लगेगा उस पर

 पक्षपात का

गर ज़रा सा भी दुःख

न वह  देगा मुझे

मैं भी तो एक ज़र्रा हूँ

उसकी कायनात का

उसी कारवां की एक मुसाफिर

सुख दुःख की छावों मैं

चलते हैं जहां सभी

अछूती रही गर

दुनिया के दस्तूर से

क्या रूस्वाँ न होगा

मेरा मुक्कदर

लिखने वाला



रजनी छाबड़ा 

Friday, January 15, 2010

kaash!

काश!


काश!अपना कह देने भर से ही

गैर अपने होते

तो अनजान शहर में भी

अजनबी लोगों से घिरे

खुशनमा सपने होते

मगर हकीकत तो यह की

अपने ही शहर में अपने

बेगानों सा मिला करते हैं

क्यों खफा रहते हैं आप हम से

इस पर यह गिला करते हैं



रजनी छाबरा

Thursday, January 14, 2010

मैं मनमौजी

मैं मनमौजी
========

मुझ से कैसी होड़ पतंग की

मैं पंछी खुले आसमान का

सकल विस्तार

 निज पंखों से नापा

डोर पतंग की

 पराये हाथों

उड़ान गगन की

आधार धरा का

Thursday, January 7, 2010

yaaden

यादें


यादें पहले प्यार की

जीते जी भुलाना

गर इस कद्र आसान होता

तो,हर शाम की तन्हाई मैं

इक नया प्यार जवान होता