काश!
काश!अपना कह देने भर से ही
गैर अपने होते
तो अनजान शहर में भी
अजनबी लोगों से घिरे
खुशनमा सपने होते
मगर हकीकत तो यह की
अपने ही शहर में अपने
बेगानों सा मिला करते हैं
क्यों खफा रहते हैं आप हम से
इस पर यह गिला करते हैं
रजनी छाबरा
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