अग्नि के अंतिम रथ पर विदा हुए जब तुम
तुम अकेले न थे उस में
संग थे मेरे अरमान,मेरे सपने
तुम ज़िन्दगी की सरहद के उस पार
सांझ के तारे में
करती हूँ तुम्हारा दीदार
तेरी यादों की अरणियों से
सुलगती अब भी
दफ़न हुई राख़ में चिंगारियां
तिल तिल सुलगाती मुझे
ज़िन्दगी के तनहा सफ़र में
No comments:
Post a Comment