पथिक बादल
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एक पथिक बादल
जो ठहरा था पल भर को
मेरे आंगन पर
अपने स्नेह की शीतल छाया ले कर
वक़्त की बेरहम हवाओं के साथ
न जाने ज़िंदगी के
किस मोड़ पर ठहर जाये
रह रह कर मन में
इक कसक सी उभर आये
काश!इक मुट्ठी आसमान
मेरा भी होता
क़ैद कर लेती इस मैं
उस पथिक बादल को
मेरे धूप से सुलगते आंगन मैं
संदली हवाओं का ,बसेरा होता
रजनी छाबड़ा
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एक पथिक बादल
जो ठहरा था पल भर को
मेरे आंगन पर
अपने स्नेह की शीतल छाया ले कर
वक़्त की बेरहम हवाओं के साथ
न जाने ज़िंदगी के
किस मोड़ पर ठहर जाये
रह रह कर मन में
इक कसक सी उभर आये
काश!इक मुट्ठी आसमान
मेरा भी होता
क़ैद कर लेती इस मैं
उस पथिक बादल को
मेरे धूप से सुलगते आंगन मैं
संदली हवाओं का ,बसेरा होता
रजनी छाबड़ा
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