पहचान
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अंधकार को
अपने दामन मैं समेटे
ज्यों दीप बनाता है
अपनी रोशन पहचान
यूं ही तुम,
अश्क़ समेटे रहो
खुद मैं
दुनिया को दो
सिर्फ मुस्कान
अपनी अनाम ज़िन्दगी को
यूं दो एक नयी पहचान
रजनी छाबड़ा
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