Tuesday, January 28, 2025

जड़ां नाल रिश्ता



जड़ां नाल रिश्ता 

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बस्ती वेच रेह के वी 

महसूस थींदा हे वीराणा 

मन वेच हुण तक हे 

पेन्ड दी यादां दा आशियाना 


सनसन वेहंदी 

ठंडी हवा 

बगीचियाँ वेच 

कोयल दी  कूक 

दरिया दा 

साफ़  सुथरा , ठंडा  पाणी 

वगदा गुनगुणादे 

याद कर के 

दिल अमुझदा 


चुल्हे दी 

मधरी अग ते 

रेझा दिती दाल 

अंगारेया ते सिकि 

फुली फुली रोटियां 

सवांजणा ते कचनार 

डोली दी रोटी 

बेमिसाल 

ईना दी ख़ुश्बू ही 

भड़का देंदी भुख 


शहरी ज़िंदगी दी 

उलझनां वेच उल्झिया 

सारे दिन दी थकान तुं पस्त 

दो निवाले गले विच 

उतारण तुं  पैले 

कयीं वार ज़रूरत पैंदी हे 

'ऐपिटाईज़र ' दी 


नियाणे रोटी निगलदे 

टी. वी. वेच नज़रां धस्साए

उंहांकू होण परियां दे मुल्क  दियां 

कहाणियां कौण सुणावे 


ए. सी.  ते कूलर दी हवा  दा 

नयि कोई मुक़ाबला 

कुदरती हवा दे नाल 

खुली छत ते समणा  मुमकिन नयि 

नहीं वेख सकदे  होण 

तारियाँ दी अख- मिचौली 

चंदरमा दी रवानी 


वधिया होटल वेच 

आर्डर देने वक़त 

तुसां हजे  वी  मँगवादे हो 

धुएंदार 'सिज़्ज़्लर '

तंदूरी रोटी 

मखणी दाल 

मकई दी रोटी 

सरसों दा  साग 

देसी मखण ते मठ्ठा 

धुएं वाला रायता 

याद है हजे वी तुहानकु 

इंहा  दा ज़ायका 


रोज़ी रोटी दी जुग़ाड़ वेच 

किथे वी बसर करणा पवे 

नहि टूट सकदा 

जड़ां नाल रिश्ता 









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