Wednesday, July 29, 2015

यह कैसा नाता है

तुमसे कैसा यह नाता है
खुशियाँ तुम्हें मिलती है
दामन मेरा भर जाता है

करवटें तुम बदलते हो
सुकून मेरा छिन जाता है


आहत तुम होते हो
आब मेरी आँखों में 
उभर जाता है

तुम्हारी आँखों से
अश्क़ छलकने से पहले
अपनी पलकों में समेटने को
जी चाहता है

अठखेलियां करती
 लहरों में 
क्यों तेरा अक्स
 नज़र आता है

खामोश फिज़ाएँ
गुनगुनाने लगती हैं
तेरा ख़याल
मुझ में रम जाता है

कानों में सुरीली
घंटियाँ सी बजती है
जब तेरी आवाज़ का
जादू छाता है

ज़िन्दगी का आधा खाली ज़ाम
आधा भरा नज़र आता है

अनाम रिश्ते को
नाम देने की कोशिश में 
शब्दकोष रीत जाता है

तुम्ही कहो ना
तुमसे यह कैसा
नाता है


रजनी छाबड़ा 

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