मन की बात मन से
एक लम्बे अरसे के बाद हिंदी में काव्य रचना की की है/ लिखना मेरे नित्य कर्म नहीं, परन्तु जब भी अपने आस पास कुछ ऐसा घटित होता है जो मेरे अंर्तमन को झकझोर दे, उसे कलमबद्ध करने के लिए अनायास ही तत्पर हो जाती हूँ/ सामाजिक परिवेश की कुछ खामियां, कुछ अच्छाईयां दोनों ही गहरा असर छोड़ती हैं : या कुछ ऐसी स्मृतियाँ जो मन के पटल पर बार बार उभरती है, मुझे काव्य रचना के लिए उकसाती हैं
मैं लिखती नहीं
कागज़ पर मेरे ज़ज़्बात बहते है
कह न पायी जो कभी दबे होंठों से
वही अनकही कहानी कहते हैं
आरंभिक कवितायेँ प्रकृति - सौंदर्य पर लिखी , जब में श्रीनागर में अध्ययन रत थी और फिर एक लम्बे अंतराल के बात राजस्थान की सुनहरी धरा पर काव्य सृजन शुरू हुआ/ स्वैच्छिक सेवा निवृति के उपरान्त, हिंदी, अँग्रेज़ी और पंजाबी में मौलिक सृजन के साथ ही हिंदी, पंजाबी , उर्दू और राजस्थानी से अंग्रेज़ी मैं अनुसृजन का सिलसिला भी अनवरत चल रहा है/
कोविड 19 विभीषिका के दौरान ज़िंदगी के कुछ अनदेखे पहलू देखे/ एक अलग ही दौर से गुजरना पड़ा / अपने आस पास के वातावरण सेअछूती नहीं रही/विषम परिस्थितियों के बावजूद , परमात्मा के प्रति विश्वास में कोई कमी नहीं आने पायी / इस मनस्थिति को भी कलमबद्ध करने का प्रयास किया है/
विश्वास है कि आस और विश्वास के ताने बाने से बुना, मेरा काव्य संग्रह 'आस के कूची से' आपको पसंद आएगा /आप सभी सुधि पाठकों की प्रतिक्रिया जानने की उत्सुकता रहेगी /
रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री, अनुवदिका व् अंकशास्त्री
No comments:
Post a Comment