Sunday, July 25, 2021

 

*समय से सवाल करती  आस की कूंची ।

     कविता में  समय के साथ उसका स्वरूप, कथ्य , भाषा- शैली और प्रतिबद्धता बदलाव आता रहा हैं। समय के साथ समय और समाज से भी प्रभावित होती रही है कविता, यह बदलाव उचित भी है ।
 कविता का समकालीन दौर संवाद से भरा है । इस समय की कविता  प्रभावशाली होने के कारण कविताओं में आम आदमी के साथ गहरा रिश्ता बनाती हैं ।
   कवि - कर्म कठिन होता जा रहा है । समकालीन कविता आम आदमी की वेदना को अभिव्यक्त करती है ।
      जब भी कविता में नारी विमर्श एवं उसकी वेदना की बात की जाएगी रजनी छाबड़ा की कविता की गंभीरता को रेखांकित किया जाएगा । छाबड़ा की कविताओं में सरसता है । 
     आस की कूंची की कविताओं को पढ़ते हुए उनकी काव्य क्षमता का परिचय मिलता है, वे मूलतः अग्रेंजी की कवयित्री व् अनुवादिका हैं, परन्तु हिन्दी कविता में समसामयिक विषयों को भी बेबाक़ अभिव्यक्त करने का हुनर रखती है ।
     रजनी छाबड़ा की कविता में नारी वेदनाओं की पीड़ा, रिश्तों की कसौटी, प्रेम और अपनापन का एक अनूठा संगम है । उनकी कविता परम्परा भंजक नहीं हैं । करूणा  और मूल्य उनकी इन कविताओं में विद्यमान है । माँ, बेटी-बेटा और अपनों के दृश्य इनकी कविताओं में देखकर पाठक कवि से आत्मीयता का रिश्ता बनाता है ।
    अपने शहर के प्रति अनुराग, विश्वास, रिश्ते सहेजना, आधुनिक पीढ़ी, हिम्मत और टूटते सपनों को खुशियों से भरने जैसे मूल्यों के प्रति कवयित्री का आग्रह रहा है/ कोरोना काल में शब्दों की दोस्ती के साथ जीने का सफल प्रयास कोई व्यक्ति किस तरह करता है जो अपने आप में उपलब्धि है ।
रजनी छाबड़ा की कविताएं प्रचलित फार्मूले से अलग सामने खड़ी मौत को थमने, गैरो से भी शिकायत दर्ज नहीं करती, कवयित्री बीती कहानी बनना पसंद  नहीं करती बल्कि उम्मीद का दीपक जलाती है/ सतरंगी खुशियां बिखेरतीं हैं /
 रेत की दीवार सी जिंदगी पर उनकी यह कविता हौसला देती है:
*रेत की दीवार*
जिंदगी रेत की दीवार 
जमाने में 
आँधियों की भरमार 
जाने कब ठह जाये
यह सतही दीवार
फिर भी क्यों जिंदगी से 
इतना मोह,इतना प्यार
यह बात सही है  कि हिन्दी कविता मुखर होने के साथ-साथ बहुत तेजी से प्रगतिशील सोच के साथ  अपना मुकाम बना रही है । 
  आज मैं जब इस संग्रह से गुजर रहा हूँ तो ऐसा लग रहा है, जैसे आदमी सब कुछ भूलते हुए भी खुद के भीतर लौट जाना चाहता है । तभी रजनी छाबड़ा की कविता पाठक से सवाल करती है:-
 *बेगाने*
जिन आँखों में 
तैरा करते थे सपने 
अब उन आँखों में 
बस , वीराने नज़र आते हैं 
देखते हैं जब
अतीत की तस्वीरें 
हम खुद को ही 
बेगाने नज़र आते हैं ।

इस कविता संग्रह में कवयित्री अपने अनुभवों की व्यंजना के साथ ही  इन रचनाओं में नये बिम्बों और नये प्रतीकों के कारण संप्रेषणीय की समस्या से मुक्त नज़र आती है,  इसलिए संग्रह  पाठक के साथ आत्मीयता का रिश्ता बनाता है ।
 कवयित्री  रचना प्रक्रिया में सहजता के कारण पाठकों के समक्ष विषय-वस्तु को सरलता से प्रस्तुत करती है ।
    रजनी छाबड़ा की यह कविताएं समय से सवाल करती है कि उसके दर्द को कोई तो महसूस करे। 
मैं रजनी छाबड़ा के नये कविता संग्रह के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ  ।

*राजेन्द्र जोशी*
कवि - कथाकार 
9829032181

Mukti Sanstha

Sat, Jul 24, 2:56 PM (1 day ago)


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