Friday, July 27, 2012

kya shiqwa karen gairon se







क्या शिकवा करें गैरों से
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काश! अपना कह देने भर से

बेगाने अपने होते,तो

अनजान शहर मैं भी

अजनबी लोगों से घिरे

आँखों मैं खुशनुमा सपने होते

क्या शिकवा करें गैरों से

अक्सर ,अपने ही शहर मे,

अपने अपने नहीं होते

अक्सर अपने बेगानों सा

मिला करते है,

"क्यों खफा रहते है

आप हमसे"

उस पर ,यह गिला करते हैं

अब कहाँ जाये

यह बेचारा दिल

तन्हाई का मारा दिल

















Thursday, July 19, 2012

मन तरसता है

मन तरसता  है

याद आता  है  बरबस
वो रूठना, मनाना
वो तकरार
कितना प्यारा अंदाज़ था
प्यार का

मिल रहा सब से
स्नेह और दुलार

फिर भी मन तरसता  है 
उस तकरार को 

Saturday, July 14, 2012

फूल और कलियाँ

फूल और कलियाँ
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एक भी पल के लिए,ओ बागवान
अपने खून पसीने से सींची कली को
न आँख से ओझल होने देना
एह्साह भी न हुआ ही जिसे कभी
तेज़ हवाओं के चलन का
घिर जाये,अचानक किसी बड़े तूफ़ान मैं
अंदाज़ लगा सकोगे क्या,उसकी चुभन का
फूल बनने से पहले ही
रौंद दी जाती है कली
यह कैसा चलन हुआ 
आज के चमन का
आदम और हवा के
वर्जित फल खाने के कहानी का
जब जब होगा दोहरान
आधुनिक पीड़ी चढ़ती  जायेगी
बर्बरता की एक और सोपान 
और चमन ,यूं ही
बनते जायेंगे वीराने
फूल और कलियों के जीवन 
रह जायेंगे बन कर अफसाने



Thursday, July 12, 2012

EK HEE PL MAIN

एक ही पल मैं
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उम्र भर का साथ
निभ जाता है कभी
एक ही पल मैं
बुलबुले मैं
उभरने वाले
अक्स की उम्र
होती है फ़कत
एक ही पल की