अब के बरस
यह कैसी दिवाली
मन रीता ,आँगन रीता
चहुँ ओर वीराना
खेत खलिहान
सब खाली खाली
अकाल ग्रसित गाँव
शहर के उजियारे के करीब
सिसक सिसक कर,
बयान कर रहे
उनके अन्धियारे
अपना नसीब
तुन भी उनकी रोशनी का
बन सकते हो सबब
गर इस दिवाली
अपने आँगन मैं
दो चार दीप
जला लो कम
नहीं छेड़ते उनके नौनिहाल
फुलझडी,पटाखे
मिठाई का राग
पर,उनके चूल्हे मैं भी
हो कुछ आग
उनके आँगन मैं भी हो
दो चार रोशन चिराग़
यह कैसी दिवाली
मन रीता ,आँगन रीता
चहुँ ओर वीराना
खेत खलिहान
सब खाली खाली
अकाल ग्रसित गाँव
शहर के उजियारे के करीब
सिसक सिसक कर,
बयान कर रहे
उनके अन्धियारे
अपना नसीब
तुन भी उनकी रोशनी का
बन सकते हो सबब
गर इस दिवाली
अपने आँगन मैं
दो चार दीप
जला लो कम
नहीं छेड़ते उनके नौनिहाल
फुलझडी,पटाखे
मिठाई का राग
पर,उनके चूल्हे मैं भी
हो कुछ आग
उनके आँगन मैं भी हो
दो चार रोशन चिराग़