Tuesday, September 26, 2017


मकड़ी सम


ज़िन्दगी की आपाधापी में
इंसान कदर व्यस्त हो गया है
उसका खुद का वक़्त
कहीं खो गया है


रोज़मर्रा की
जोड़ तोड़ में उलझ गया है
ज़िंदगी का गणित
ज़िन्दगी में अब पहले सी
लज़्ज़त  नहीं


दिन भर की उलझनों के बीच
सिर्फ एक वक़्त ही
उसका अपना है
ऑफिस से घर तक का सफ़र
जब वह खुले छोड़ देती है
दिमाग़ के ख्याली घोड़े
सोचती है कुछ फुर्सत मिलें
बिताएंगी मनपसंद ढंग से
कुछ दिन थोड़े
पर फुर्सत के लम्हे
मिलते ही नहीं


शिक़ायत करे भी
तो किस से
वो बेचारी
अपने इर्द  गिर्द
व्यस्तता के ताने बाने बुनती
खुद अपने ही जाल में
मकड़ी सम उलझी नारी/

Monday, September 18, 2017

शब्दिका:       काव्य संग्रह
रचनाकार:     डॉ संजीव कुमार
प्रकाशक :      वनिका प्रकाशन, दिल्ली


समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. संजीव कुमार की कृति शब्दिका पर अपने कुछ विचार सुधि पाठकों के समक्ष रखना चाह रही हूँ/  पहली बार हिंदी में समीक्षा लिख रही हूँ; अभिव्यक्ति शाब्दिक स्तर पर कुछ कम प्रभावी हो सकती है, फिर भी अपने विचार भावना के स्तर पर प्रस्तुत करने का दुःसाहस कर रही हूँ/

'शब्दिका ' से पूर्व, डॉ. संजीव की काव्य कृतियॉं अंतरा, आकांक्षा, ऋतुम्भरा व् अपराजिता पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला; परन्तु इस काव्य कृति का अंदाज़ कुछ अलग ही है/ मन के भाव अत्यंत सहजता से उकेरे गए है और पाठक स्वतः इस शाब्दिक प्रवाह में बह जाता है/ अनुभूति के विभिन्न आयामों का सतरंगी गुलदस्ता है 'शब्दिका'/
अतीत और वर्तमान की बीच का सफर और उज्जवल भविष्य के सपने, ज़िंदगी की आपाधापी, घर -गाँव के प्रति मोह, इच्छाएँ, आकांक्षाएँ,  उम्मीद के स्वर, प्रकृति के मनमोहक दृश्य सभी कुछ अत्यंत प्रभावी रूप से समाहित है, इस गहन अभिव्यक्ति के काव्य संग्रह 'शब्दिका' में/  सीधे सादे शब्दों में बहुत गहरे अर्थ छुपे हैं/

स्वयं कवि महोदय के शब्दों में:
१  शब्द
कभी अर्थ नहीं बताते
खोजना होता है
शब्दों के मन में गहरे उतर कर
उनका भाव (पृष्ठ १५)


किन्तु सवालों  के हल
अभी भी लापता हैं
और जारी है
अभी भी तलाश
उम्मीद बाकी है/ ( पृष्ठ २१)


भावों को शब्दों में
रूपायित करते
कोई रंग नहीं भरना
उन्हें मुखर होने दो
उसी भाषा में
उसी रूप में
जिसमें वह जनमे हैं
और बनने दो
अभिव्यक्ति को
एक सीधी सादी
शब्दिका  (पृष्ठ १२)


इस काव्य संग्रह ले प्रकाशन पर मैं डॉ. संजीव कुमार को हार्दिक बधाई देते हुए, कामना करती हूँ कि उनकी लेखनी का यश सदैव बना रहे/

रजनी छाबड़ा
कवयित्री  व् अनुवादिका