Monday, March 21, 2011

माँ को समर्पित

 माँ को समर्पित 
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ज़िन्दगी और
मौत के बीच जूझती
 जिंदगी  से लाचार 
सी पड़ी थी तुम

मन ही मन तब चाहा था मैंने
कि आज तक तुम मेरी माँ थी
आज मेरी बेटी बन जाओ
अपने आँचल की छाँव में 
लेकर, करूं तुम्हारा दुलार
अनगिनत
 दुआएं खुदा से कर
मांगी थी तुम्हारी जान की खैर

बरसों तुमने मुझे
पाला पोसा और संवारा
सुख सुविधा ने
जब कभी भी किया
मुझ से किनारा
रातों के नींद
दिन का चैन
सभी कुछ मुझ पे वारा
मेरी आँखों में  गर कभी
दो आँसू भी उभरे
अपने स्नेहिल आँचल में 
सोख लिए तुमने

एक अंकुर थी मैं
स्नेह, ममता
से सींच कर मुझे
छायादार तरु
बनाया 
ज़िंदगी भर
 मेरा मनोबल
बढाया
हर विषम परिस्थिति में 
 मुझे  समझाया
वह बेल कभी न बनना  तुम
जो परवान चढ़े
दूसरों के सहारे
अपना सहारा ख़ुद बन
बढा सको उन्हें
जो हैं तुम्हारे सहारे

पर  तुम्हे सहारा देने की तमन्ना
दिल में ही रह गयी
तुम ,हाँ, तुम, जिसने सारा जीवन
सार्थकता से बिताया था
कभी किसी
के आगे
सर न झुकाया था
जिस शान से जी थी
उसी शान से दुनिया छोड़ चली

हाँ, मैं ही भूल गयी थी
उन्हें बैसाखियों के सहारे चलना
कभी नही होता गवारा
जो हर हाल में 
देते रहे हो
औरों को सहारा/
 
रजनी छाबड़ा