Monday, December 18, 2017

जीने की वजह

जीने की वजह 
************

निज ज़िन्दगी में
 न जागने की वजह
न सोने की वजह

इसे दुनिया के नाम
कर दीजिए
जीने की वजह 
खुद बख़ुद
मिल जायेगी

अश्क पीने की आदत
बदल जाएगी
अश्क़ पोंछने का हुनर
रास आ जाएगा
जीने का अन्दाज़
निखर जाएगा/

Wednesday, November 22, 2017

क्षितिज के पास

क्षितिज के पास 

क्षितिज के पास 
कर रहे हो 
इन्तज़ार मेरा 


जहाँ दो जहान 
मिल कर भी 
नहीं मिलते 
अधूरी है तम्मनाएँ 
अधूरी मिलन की आरज़ू 
फ़ूल अब खिलकर भी 
नहीं खिलते/

Tuesday, September 26, 2017


मकड़ी सम


ज़िन्दगी की आपाधापी में
इंसान कदर व्यस्त हो गया है
उसका खुद का वक़्त
कहीं खो गया है


रोज़मर्रा की
जोड़ तोड़ में उलझ गया है
ज़िंदगी का गणित
ज़िन्दगी में अब पहले सी
लज़्ज़त  नहीं


दिन भर की उलझनों के बीच
सिर्फ एक वक़्त ही
उसका अपना है
ऑफिस से घर तक का सफ़र
जब वह खुले छोड़ देती है
दिमाग़ के ख्याली घोड़े
सोचती है कुछ फुर्सत मिलें
बिताएंगी मनपसंद ढंग से
कुछ दिन थोड़े
पर फुर्सत के लम्हे
मिलते ही नहीं


शिक़ायत करे भी
तो किस से
वो बेचारी
अपने इर्द  गिर्द
व्यस्तता के ताने बाने बुनती
खुद अपने ही जाल में
मकड़ी सम उलझी नारी/

Monday, September 18, 2017

शब्दिका:       काव्य संग्रह
रचनाकार:     डॉ संजीव कुमार
प्रकाशक :      वनिका प्रकाशन, दिल्ली


समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. संजीव कुमार की कृति शब्दिका पर अपने कुछ विचार सुधि पाठकों के समक्ष रखना चाह रही हूँ/  पहली बार हिंदी में समीक्षा लिख रही हूँ; अभिव्यक्ति शाब्दिक स्तर पर कुछ कम प्रभावी हो सकती है, फिर भी अपने विचार भावना के स्तर पर प्रस्तुत करने का दुःसाहस कर रही हूँ/

'शब्दिका ' से पूर्व, डॉ. संजीव की काव्य कृतियॉं अंतरा, आकांक्षा, ऋतुम्भरा व् अपराजिता पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला; परन्तु इस काव्य कृति का अंदाज़ कुछ अलग ही है/ मन के भाव अत्यंत सहजता से उकेरे गए है और पाठक स्वतः इस शाब्दिक प्रवाह में बह जाता है/ अनुभूति के विभिन्न आयामों का सतरंगी गुलदस्ता है 'शब्दिका'/
अतीत और वर्तमान की बीच का सफर और उज्जवल भविष्य के सपने, ज़िंदगी की आपाधापी, घर -गाँव के प्रति मोह, इच्छाएँ, आकांक्षाएँ,  उम्मीद के स्वर, प्रकृति के मनमोहक दृश्य सभी कुछ अत्यंत प्रभावी रूप से समाहित है, इस गहन अभिव्यक्ति के काव्य संग्रह 'शब्दिका' में/  सीधे सादे शब्दों में बहुत गहरे अर्थ छुपे हैं/

स्वयं कवि महोदय के शब्दों में:
१  शब्द
कभी अर्थ नहीं बताते
खोजना होता है
शब्दों के मन में गहरे उतर कर
उनका भाव (पृष्ठ १५)


किन्तु सवालों  के हल
अभी भी लापता हैं
और जारी है
अभी भी तलाश
उम्मीद बाकी है/ ( पृष्ठ २१)


भावों को शब्दों में
रूपायित करते
कोई रंग नहीं भरना
उन्हें मुखर होने दो
उसी भाषा में
उसी रूप में
जिसमें वह जनमे हैं
और बनने दो
अभिव्यक्ति को
एक सीधी सादी
शब्दिका  (पृष्ठ १२)


इस काव्य संग्रह ले प्रकाशन पर मैं डॉ. संजीव कुमार को हार्दिक बधाई देते हुए, कामना करती हूँ कि उनकी लेखनी का यश सदैव बना रहे/

रजनी छाबड़ा
कवयित्री  व् अनुवादिका

Sunday, July 30, 2017

मेरी हिन्दी कविताएं

श्रीगंगानगर से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित त्रैमासिक पत्रिका सृजन कुञ्ज के प्रकाशक आशु कृष्ण जी, अतिथि संपादक महोदया व् सम्पादकीय टीम का हार्दिक आभार, महिला लेखन विशेषांक में मेरी चुनिंदा कविताओं को शामिल करने के लिए/ यह उपलब्धि मेरी ख़ुशी को और भी बढ़ा रही हैं क्योंकि मेरा ससुराल पक्ष श्रीगंगानगर से है / सन 1996 से मेरा नाता है इस शहर से, परन्तु वहां के साहित्यिक  जगत में यह मेरी पहली दस्तक है/

रजनी छाबड़ा 
Extending my heartiest gratitude to the Editor and team of Srijan kunj. It's still more a matter of joy for me that it is published from Sriganganagar and my in law family is deeply rooted in Sriganganagar

Wednesday, July 12, 2017

तुम्हारे नयन

तुम्हारे नयन 

तुम्हारे नयन 
जानते हैं 
मुस्कान की भाषा 
चेहरे से 
दिल का हाल 
पढ़ने का हुनर 
कुछ तो जादुई है 
तुम्हारी चम्पई सूरत 
और मूमल सरीखी सीरत में 
ओ! मेरी प्रियतमा ------

तुम जानती हो सब 
परायों को अपना बनाने 
का सम्मोहन मंत्र 

कितना ही चाहूँ मैं 
होश में रहना 
पर तुम जानती हो 
पल छिन में 
खुद में समेट  लेने 
का करतब 
तुम 
केवल तुम नहीं हो 
तुम से ही 
मेरी  पहचान 
और मेरी दुनिया की शान 
ओ! मेरी प्रियतमा ------
तुम हँस दो
तो
मुस्कुराती है मेंरी
समूची दुनिया

तुम्हारी कोकिला सी
सुमधुर कुहुक
शीतलता बरसाती है
मेरे हृदय की तपिश पर

तुम रूठो गर
लगता है
थम जाएंगी मेरी साँसे

मेरी सांसों की सुरक्षा
तो
अब तुम्हारी आखों के
रक्तिम डोरों के
हवाले है/


थम जावे सांसां ; मूल राजस्थानी काव्य कृति  -रवि पुरोहित
हिंदी अनुकृति   ; रजनी छाबड़ा 

Saturday, July 8, 2017

दिल का तो मालूम नहीं, ज़हन अभी जवान है
या खुदा! तेरी रहमत से इसकी शान है/

Thursday, June 29, 2017

अभी जीने दो

अभी जीने दो 

अभी जीना है मुझे 
सुलझाने हैं 
ज़िन्दगी के कुछ 
पेचीदा ख़म 
तुम गर 
आ भी जाओ 
ओ यम !
कुछ देर के लिए 
जाना थम 


रजनी छाबड़ा 


Thursday, June 8, 2017

गुनगुनाती फ़िज़ाएं

दिल ढूँढ़ता हैं फिर वही फुरसत के रात दिन 


गुनगुनाती फ़िज़ाएं
 कुनमुनाती धुप

सुकून का बोलबाला
और हाथ में गर्म चाय का प्याला
मेहरबान रहे बस यूँ ही ऊपरवाला 

Tuesday, May 23, 2017

                       रिपु दमन

किसी भी उद्देश्य हेतु लड़ने के लिए
चिन्हित कीजिये अपने अवरोध, अपने शत्रु
वर्गीकृत कीजिये और खोजिये अपने शत्रु
और खोजिये इस शत्रुता के आरम्भ होने की वजह

किसी भी युद्ध को शुरू करने से पूर्व
सौ बार सोचिए अपनी नीतियों के बारे में
अपनी शक्ति का आँकलन कीजिये
और आंकिये ताकत अपने शत्रु  की
शुरू कीजिये युद्ध उसके विरुद्ध
जो मुख्य शत्रु चिन्हित किया आपने


वासना, क्रोध, लोभ ,मोह,
ईर्ष्या और घमण्ड
यह छः हमारे बरसों पुराने शत्रु  हैं
बारम्बार अपने बुरे चेहरे
हमें दिखाते हुए


अपनी समस्याएं घटाने के लिए
अपनी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए
अपने पुरातन रिपुओं को जानिए


प्यार उपजता है वासना से
और सौन्दर्य  कामुकता  से
क्रोध जन्मता है गहरे उद्धवेग
आशा उपजती है लोभ से
मोह जगाता है ध्यान आकर्षण
प्रबल इच्छा उपजती है
ईर्ष्या के वशीभूत होने से
और अनूठे होने का एहसास अहंकार से


अंतंतः इन सब पहलुओं को विचारते हुए
हमें स्वीकारनी ही होगी यह ललकार
लोभ के विरुद्ध लड़ने की
जिसने की पगला रखा है हमें
इस अनूठी धरा पर

हमें जीतना ही होगा यह युद्ध
करना ही होगा रिपुदमन/

मूल लेखन बंगला में:  डॉ श्यामल मजूमदर, बंगलादेश के प्रख्यात कवि व् अनुवादक 
 व् उनकी अनुमति से हिंदी में मेरे अनुवाद कार्य 

रजनी छाबड़ा 
बेंगलुरु 

Wednesday, May 17, 2017

जज़्बात बहते हैं

जज़्बात  बहते हैं

मैं लिखती नहीं
कागज़ पर
मेरे जज़्बात
बहते हैं


कह न पायी
जो कभी दबे होंठों से
वही अनकही
कहानी कहते हैं /

रजनी छाबड़ा


Saturday, May 13, 2017

माँ



माँ
****

मातृत्व का अर्थ
जीवन का विस्तार
स्नेह, प्यार, आधार
विश्वास अपरम्पार
त्याग, सामंजस्य का भण्डार
सृजन से, विलीन होने तक
इस ममत्व का कभी न होता अंत
माँ जाने के बाद भी
आजीवन बसर करती
 यादों में अनंत

रजनी छाबड़ा 

Friday, May 12, 2017

महसूस किया है मैंने

तुझको देखा नहीं
महसूस किया है मैंने
अनछुए स्पर्श से
सांसों में जिया है मैंने


इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अभी अभी लिखी एक नज़म

फख्त नज़रों से दूर रहने से
कभी दिल से दूर रहा है कोई

ख़ामोश लब रहें, आँखे बोलती है
हाल ए दिल बयाँ  करने से मज़बूर रहा है कोई

तेरी याद में खाली गया न दिन कोई
यह सिलसिला रातों को भी थाम सका है कोई

नम आँखों से तुझे याद करता हैं हरदम कोई
यादो की रवानी रोक सकता है कभी कोई


रजनी छाबड़ा 

Saturday, March 25, 2017

याद करते हैं

अब भी याद करते हैं
मुझे मेरे शहर के लोग
ठीक वैसे ही जैसे
मेरी यादों में बसे हैँ


नज़र से ओझल होने से
कोई दिल से दूर नहीं होता 

Friday, March 24, 2017

रिश्तों की उम्र


रिश्तों की उम्र 

मतलब के रिश्तों की उम्र 
अक्सर छोटी होती है 


उन्हें परखने के लिए 
स्वार्थ की कसौटी होती है 

निस्वार्थ रिश्ते स्वतः 
निभ जाते है आजीवन 


इन रिश्तों की साँसे 
हमारी साँसों में बसी होती हैं 


रजनी छाबड़ा 


Wednesday, February 22, 2017

हमारे बीकानेर से , राजस्थानी और हिंदी के प्रख्यात कहानीकार - व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा को उनके राजस्थानी कहानी संग्रह 'मर्दजात अर दूजी कहाणियां ' ले लिए आज साहित्य अकादमी द्वारा भव्य समारोह में सम्मानित किया गया/

पुरस्कार ग्रहण करते हुए बुलाकी जी /


हमारे बीकानेर से , राजस्थानी और हिंदी के प्रख्यात कहानीकार - व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा को उनके राजस्थानी कहानी संग्रह 'मर्दजात अर दूजी कहाणियां ' के लिए आज साहित्य अकादमी द्वारा भव्य समारोह में सम्मानित किया गया/

पुरस्कार ग्रहण करते हुए बुलाकी जी /




It is a matter of great pride and joy that famous story writer and satirist Bulaki Sharma ji , from our Bikaner has been awarded in a grand function by Sahitya Akademi ,for his collection of Rajasthani stories MARDJAAT AR DOOJEE KAHANIYAAN

Heartiest Congrats to Bulaki Sharma ji

Monday, February 13, 2017

हम कहाँ थे,हम कहाँ जा रहे हैं

हम कहाँ थे,हम कहाँ जा रहे हैं – रजनी छाबड़ा


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हम कहाँ थे,हम कहाँ जा रहे हैं
रजनी छाबड़ा 
सुहाग के जोड़े,कुमकुम सने पग और
मेहँदी रचे हाथों से सजी संवरी दुल्हनिया
घोड़े पर सवार,सेहरे से सजे,
शाही शान से आते दुल्हे राजा
क्या ख्वाबों की बात हो जायेंगे
और चटक,जनक जननी के जज़्बात जायेंगे
अपने जिगर के टुकड़े को
निगाहों से दूर बसने देना
क्या उन्हें मनमानी का परमिट दे गया
और अभिभावक क्या
उनका जीवन साथी सुझाने में
इतने अक्षम हो गए कि
नयी पौध द्वारा,वैवाहिक जीवन से पहले ही
खुद को आजमाना ज़रूरी हो गया
रिश्ते न हुए,
हो गयी मिठाई
चख लो, भायी तो भायी
वरना ठुकराई
आदम और हव्वा की
वर्जित फल खाने की
कहानी का दोहरान
आधुनिक पीड़ी चढ़ती जायेगी
दिशाहीनता की एक और सोपान
मृगतृष्णा सी तलाश
भटकन की राह दिखती है
तन मन की बेताबी बढाती है
जीवंत विश्वास,संस्कार और परम्पराएँ
क्यों न हम यही आजमाई राह अपनाये
कानून की कलम से लिखा
लिव इन का फैसला
सर पर सवार होने न पाए
भारतीयता का परिवेश बदलने न पाए
हम भारतीय हैं, भारतीय रहेंगे
तपस्वनी धरा का यही औचित्य
सारी दुनिया को दिखलायें

ग्वालियर टाइम्स में २०१२ में प्रकाशित 
https://gwaliortimes.wordpress.com/2012/02/14/%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%A5%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%9C%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%88/
रजनी छाबड़ा 

Sunday, February 12, 2017

दिल के मौसम



दिल के मौसम



होती है कभी
फूलों मे
काँटों सी  चुभन
कभी काँटों मैं
फूल खिला करते हैं
बहार मैं वीराना
कभी वीराने मैं
बहार सा एहसास
यह दिल के मौसम
यूं,बेमौसम
बदला करते हैं

Saturday, February 11, 2017

मेरी हिंदी कविता 'इन्द्रधनुष ' का डॉ अमरजीत कौंके द्वारा किया गया पंजाबी अनुवाद " पंजाब टुडे " में प्रकाशित....


कैनेडा से निकलने वाली पंजाबी पत्रिका 
" पंजाब टुडे " में हिंदी के चुनिंदा कवियों 
मोहन सपरा, सुशांत सुप्रिय, अलका सिन्हा, राजेन्द्र परदेसी, नीलिमा शर्मा, आरती तिवाड़ी व् राजवंत राज की कविताओं के साथ ही साथ मेरी हिंदी कविता 'इन्द्रधनुष ' का डॉ अमरजीत कौंके  द्वारा किया गया 
पंजाबीअनुवाद प्रकाशित....
शुक्रिया डॉ अमरजीत कौंके और पंजाब टुडे टीम...


 Heartiest thanx Dr Amarjeet Kaunke for this commendable effort and congrats to Panjab Today team. Congrats to all the poets who had the honour of getting their poems translated by your mighty pen



इन्द्रधनुष

मेरी
ज़िन्दगी के आकाश पे
इन्द्रधनुष   सा
उभरे तुम


नील गगन सा विस्तृत
तुम्हारा प्रेम
तन मन को पुलकित
हरा भरा  कर देता
खरे सोने सा सच्चा
तुम्हारा प्रेम
जीवन में  
खुशियों के
रंग भर  देता
तुम्हारे
स्नेह की
पीली ,सुनहली
धूप में 
नारंगी सपनों का
ताना बाना बुनते
संग तुम्हारे पाया
जीवन में 
प्रेम की लालिमा
सा विस्तार
इन्द्रधनुषी 
सपनो से
सजा
संवरा
अपना संसार

बाद
तुम्हारे
इन्द्रधनुष  के और
रंग खो गए
बस, बैंजनी विषाद
की छाया
दूनी है
बिन तेरे ,मेरी ज़िन्दगी
सूनी सूनी है


रजनी छाबड़ा

Sunday, January 22, 2017

बहुत फर्क है

बहुत फर्क है 
साँस लेने में 
और जीने में 

बहुत फर्क है 
अश्कों को रवानी देने 
और अश्क पीने में 


रजनी छाबड़ा 



Saturday, January 21, 2017

राज़ है यह गहरा

सपने किसी से पूछ कर नहीं आते
न ही सपनों पर किसी का पहरा
बिन पंखों के ही
कैसे पहुँचा देते है
सतरंगी दुनिया में
राज़ है यह गहरा


रजनी छाबड़ा