Tuesday, May 30, 2023

बो ही है सूरज




 बो ही है सूरज 

रोशनी रूप बदले है नित 


बे  ही  नदियां ,  बे  ही झरने 

पाणी रे बगणों रा ढब -ठौर l

बदले है नित 


बो ही है, म्हारी जिंदगी 

रोज़ाना 

पण रोको न थारी चाल 

कोसिस करो 

नित, नुवी राह खोजै ताणी

अण नुवी मंज़िल ताईं


रजनी छाबड़ा 

बहुभाषीय कवयित्री अर अनुवादिका

वही है सूर्य 

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सूर्य का  स्वरूप वही है 

प्रकाश बदलता रहता है नित 


वही हैं नदियाँ, वही झरने 

पानी के वेग का अंदाज़ 

बदलता रहता है नित 


वही है हमारी ज़िंदगी 

दिन-प्रतिदिन 

पर कदम थामो नहीं 

प्रयत्नशील रहो 

नित नयी राह

तलाशने के लिए 

और नए आयाम 

खँगालने के लिए /

रजनी छाबड़ा 

थूं सुण रैयी है कांई?मां !

   थूं सुण रैयी है कांई?मां !

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मां ! थूं केई बार कैवती
बबली, थूं ईती अमुझनी क्यूं है 
की तो बोल्या कर
मन दरूजो खड़का
कदै तो सबदां रै खोजां खोल ।
अबै म्हैं बोलण लागयी  
थूं ई सुणबा नै नीं है

भाव-चींत रा जिका बीज
थूं छिड़कगी म्हारै मन-आंगणै,
कौल है म्हारा
इण ढब ई बधता रैसी ।
सीधै सबदां भाखूं ली
निरमळ नदिया ज्यूंइण ढाळै ई
बैवती रैसी थारी मन री सीख-धार !
म्हारो अबोलो मून
अबै बोलण लागयो  है
 थूं सुण रैयी है कांई ? मां !