Sunday, February 4, 2024

LATEST BIO DATA OF RAJNI CHHABRA

 रजनी छाबड़ा (जुलाई 3, 1955)

पत्नी : स्व. श्री सुभाष चंद्र छाबड़ा

राष्ट्रीयता : भारतीय

जन्मस्थान : देहली

सेवानिवृत व्याख्याता (अंग्रेज़ी)बहुभाषीय कवयित्री व् अनुवादिकाब्लॉगर, समीक्षक, Ruminations, Glimpses (U G C  Journals) की सम्पादकीय टीम सदस्य वर्ल्ड यूनियन ऑफ़ पोएट्स  की इंटरनेशनल डायरेक्टर 20ग्लोबल एम्बेसडर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड पीस (I H R A C),  स्टार एम्बेसडर ऑफ़ वर्ल्ड पोइट्री, सी इ. ओ व् सस्थापक www.numeropath. com 

 प्रकाशित पुस्तकें : 4  हिंदी काव्य संग्रह 'होने से न होने तक', 'पिघलते हिमखंड', 'आस की कूंची से', 'बात सिर्फ इतनी सी '  

इंग्लिश पोइट्री Mortgaged

अंकशास्त्र और नामांक -शास्त्र पर 11 पुस्तकें 

अनुदित पुस्तकें : Aspirations,  Initiation, A Night in Sunlight, Swayamprabha, Accursed, Haven to  Soul, A Handful of Hope हिंदी से , Reveries पंजाबी से व् Fathoming Thy Heart, Vent Your Voice, Language Fused in Blood, The Sun on Paper, In the Art Gallery of My Heart, Across the Border, Sky is the Limit,  Let the Birds Chirp राजस्थानी से इंग्लिश लक्ष्य भाषा में अनुदित; मेरे २ हिंदी काव्य संग्रह 'होने से न होने तकव् 'पिघलते हिमखंडमैथिली और पंजाबी में व् अंग्रेज़ी काव्य संग्रह Mortgaged बांग्ला और राजस्थानी में अनुदित व् चुनिन्दा कविताएँ 10  क्षेत्रीय भाषाओँ में अनुदित 

अन्य उपलब्धियां 

स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काव्य सम्मेलनों में भागीदारी व् 7 अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रहों में रचनाएँ सम्मिलित , 1991 से 2010 तक, आकाशवाणी, बीकानेर से निरंतर काव्य पाठ प्रसारण 

डिजिटल साहित्य में निरंतर योगदान , पोयम हन्टर्स डॉट.कॉम पर अनेकानेक कविताओं के वीडियो , किंडल बुक पब्लिशिंग से 40 इ बुक्स प्रकाशित

आकाशवाणी, बीकानेर से 1991 से 2010 तक निरंतर काव्य पाठ प्रसारण 

सम्मान : 
श्रीनाथद्वारा साहित्य मंडल , राष्ट्रीय स्तर सम्मान , 2001
 
साहित्य सृजन अवार्ड, 2016  एस आर ऍम  यूनिवर्सिटी  चैन्नई, सत्यशील ज्ञानोदय द्वारा गंगा कावेरी काव्य समागम,राष्ट्रीय स्तर सम्मान , चेन्नई 2016 

प्राइड ऑफ़ वीमेन ( आगमन संस्था , देहली ) 2018  

नारी गौरव सम्मान 2019 ( मेरठ से)

 स्टार एम्बेसडर ऑफ़ वर्ल्ड पोएट्री, 2019 (वर्ल्ड पोएट्री कॉन्फ्रेन्स , भटिंडा) 

टैगोर मेमोरियल अवार्ड, 2021 

कालीचरण अनुवाद रत्न  सम्मान, बी पी एल फाउंडेशन , नॉएडा, 2022 


You tube channel : therajni 56

फ़ोन  : 9538695141

 e mail : rajni. numerologist @ gmail.com

 



Wednesday, December 20, 2023

हिंदी कविता का डॉ. शिव प्रसाद द्वारा किया गया मैथिली अनुवाद



मित्रों , आप सब के साथ अपनी हिंदी कविता का डॉ. शिव प्रसाद द्वारा किया गया मैथिली अनुवाद सांझा  करते  हुए हर्षित हूँ/ ज्ञात रहे कि इस से पूर्व डॉ साहिब मेरे दो हिंदी काव्य संग्रहों पिघलते हिमखंड व् होने से न होने तक का मैथिली में अनुवाद कर चुके हैं/ हार्दिक आभार इस निहायत खूबसूरत अनुवाद के लिए/


 DrSheo Kumar

पूर होयबासँ किएक डराएत छी?
*****************************

साइत एहिलेल कि
देखैत अबै छी जे
पुर्णिमाक चान
सकल संसारकें
अपन आभासँ नहेबाक बाद
अपन पूरमपनसँ छीजऽ लगैत अछि
नहु-नहु अन्हार राति दिस
घुसकऽ लगैत अछि
भरल -पुरल आनन्दक पऽलकें बाद
हमर आनन्दक चानो
नहु -नहु
की अमवसिया दिस
बढ़ऽ लगते?
उदास अन्हरिया रातिक बाद
इजोत आपस औतै
जेना कि अमवसियाक बाद
चान फेरसँ नहु -नहु
चाननीकें
कोरमे समेटै छै
बढ़बा -घटबाक
काज -बेपार
अहिना चलैत रहैत छैक।

Wednesday, December 6, 2023

मन का क़द

 




मन का क़द 

*********

सपने तो वो भी देखते हैं 

दृष्टि विहीन हैं जो 

किस्मत तो उनकी भी होती है 

जिनके हाथ नहीं होते 


हौंसले बुलन्द हो ग़र 

बैसाखियों पर चलने वाले भी 

जीत लेते हैं 

ज़िन्दगी की दौड़ 


मन का क़द 

ऊंचा रखिये 

काया तो आनी जानी है 

यह दुनिया फ़ानी है 

ज़िंदगी की 

यही कहानी है/


रजनी छाबड़ा 

6/12/2023 

पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं




 


पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं 

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पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं ?

शायद इस लिए कि 

देखती आयी हूँ 

पूनम का चाँद 

सकल विश्व को 

चांदनी से सरोबार करने के बाद 

पूर्णता खोने लगता है 

धीमे -धीमे अंधियारी रातों की ओर 

सरकने लगता है 


भरपूर खुशी के लम्हों के बाद 

मेरी खुशियों का चाँद भी 

धीमे -धीमे 

क्या अमावस की ओर  

अग्रसर होने लगेगा ?


उदास अधियारी रातों के बाद 

 उजास वापिस आएगा 

जैसे कि अमावस के बाद 

चाँद वापिस धीमे धीमे 

चांदनी को 

आग़ोश में समेटता है 

बढ़ना, घटना 

यह सिलसिला 

यूं ही चलता है/


रजनी छाबड़ा

6 /12 /2023

Saturday, October 28, 2023

पिंजरे का पंछी


पिंजरे का पंछी 

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 पिंजरा ही है मेरा घर 

अब तक मन को था 

यही समझाया 

उन्मुक्त उड़ान लेते 

पंछी देख 

आज मन क्यों भरमाया 


ता उम्र पिंजरे में क़ैद पंछी 

आज़ादी के लिए गिड़गिड़ाया 

बहेलिये ने तरस खा पर 

खोल दिया पिंजरे का दरवाज़ा 

 पंछी ने कोशिश की 

पंख फ़ैला, ऊंची उड़ान लेने की 

पर क्या गगन की ऊंचाई 

छू पाया 


सहम गया 

उड़ते बाज़ को देख कर 

पिंजरे में ही 

वापिस बसने का मन बनाया/


जीने का जो अंदाज़ 

रहा बरसों 

उस की क़ैद से 

नहीं छूट पाया/


@रजनी छाबड़ा 

२८/१०/२०२३ 



Sunday, October 8, 2023

काव्य संग्रह लोकार्पण बात सिर्फ इतनी सी , मन चरखे पर


काव्य संग्रह लोकार्पण 
बात सिर्फ इतनी सी 
मन चरखे पर 

















Friday, September 1, 2023

हिंदी कविता : 'बात सिर्फ इतनी सी , मैथिली, इंग्लिश और बांगला अनुवाद के साथ








मित्रों , मेरे सद्य प्रकाशित हिंदी काव्य संग्रह 'बात सिर्फ इतनी सी 'की शीर्षक कविता  बात सिर्फ इतनी सी मूल हिंदी कविता , मैथिली, इंग्लिश और  बांगला अनुवाद के साथ आप सब से सांझा कर रही हूँ/  





मैथिली अनुवाद :  डॉ.  शिव कुमार प्रसाद 

इंग्लिश अनुवाद : Rajni Chhabra 

बांगला अनुवाद : सुबीर मज़ूमदार 

बात सिर्फ इतनी सी 
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बगिया की
शुष्क घास पर
तनहा बैठी वह
और सामने
आँखों में तैरते
फूलों से नाज़ुक
किल्कारते बच्चे

बगिया का वीरान कोना
अजनबी का
वहाँ से गुजरना
आंखों का चार होना

संस्कारों की जकड़न 
पहराबंद
उनमुक्त धड़कन
अचकचाए
शब्द
झुकी पलकें
जुबान खामोश
रह गया कुछ
अनसुना,अनकहा

लम्हा वो बीत गया
जीवन यूँ ही रीत गया

जान के भी
अनजान बन
कुछ
बिछुडे ऐसा
न मिल पाये
कभी फिर
जंगल की
दो शाखों सा

आहत मन की बात
सिर्फ इतनी
तुमने पहले क्यों
न कहा

वह  आदिकाल
से अकेली
वो अनंत काल
से उदास
और सामने
फूलों से नाज़ुक बच्चे
खेलते रहे/

बात सिर्फ इतनी सी
रजनी छाबड़ा 





बात मात्र एतबी टा

फुलवारीक सुखाएल घास पर
एसगर बैठलि ओ 
आ सोझामे
आँखिमे नचैत
फूल सन सुकुमार
किलकैत नेना सभ
फुलवारीक सुन्न कोन
एकगोट अनचिन्हारक
ओहि बाटे जाएब
आँखि मिलब
संस्कारक बन्हनमे बन्हाएल
पहराबद्ध
धकधकाएत करेज
अकचकाएत
शब्द
झुकल पऽल(पलक)
निःशब्द जिह्वा
रहि गेल किछु
बिनसुनल,बिनकहल
उहो पल बीत गेल
जिनगी ओहिना रीत गेल
बुझितो
अनबुझ बनल
किछु
एना बिछरलहुँ जे
फेर कहियो भेंट नहि भेल
जंगलक (गाछक) दूटा डार्हिसन

व्यथित मनक बात
मात्र एतबे
अहाँ पहिले किएकने
कहलहुँ

ओ अदौसँ
एसगरि
आ अनन्त कालसँ
उदास

आ सोझामे
फूल सन नेना सभ
खेलाएत रहल।

अनुवाद 
डॉ शिव कुमार प्रसाद, सिमरा, झंझारपुर, मधुबनी।



ETERNAL LONELINESS

On the withered grass
Of orchard
She was
Sitting alone

And in front of her eyes
In her vision were
Blossom like kids
Giggling and playing

In the deserted corner
A stranger passed by
His eyes ,abruptly
Met with her eyes.

Caged by traditions
Confined heart beats
Hesitant words
Mum lips
Downcast eyes
Something remained
Unheard ,unushered.

The moment passed
Leaving behind
Vacuum in life.

knowing and still
Pretending to be ignorant
They parted
And could never
Meet again in life
Like two branches
Of thicket

Only pang of
Hurt heart was
Why you did not
Disclose your mind
At that instant only

She is lonely
Since epochs
He is forlorn
Since ages
And blossom like kids
kept giggling and playing.

RAJNI CHHABRA



Heartiest thanx to Subir Majumder ji for his wonderful gift on this wonderful translation of the poem in Bangla
চিরন্তন নিঃসঙ্গতা
কবি রজনী ছাবরার ইটারনাল লোনলিনেস কবিতাটির ভাবানুবাদ।
অনুঃ সুবীর মজুমদার
বিবর্ণ ঘাসে ঢাকা
নির্জন প্রান্তর
বসে আছে নারী এক
স্মৃতিপটে তার
কতকিছু আসে ঘুরেফিরে
একদল শিশু যেন
খেলে হেলে দুলে।
নির্জন প্রান্তরে
একাকী পথিক
চলে হেঁটে।
দৃষ্টি বিনিময়
বাধা যেন তারা
কোনো এক অমোঘ নিয়মে।
হৃদয়ের দোলাচল
ধরিত্রী নিবদ্ধ দৃষ্টি
স্মৃতিপটে ফিরে আসা
কোনো এক কাহিনী মুহূর্ত।
সময় প্রবাহমান
পলি জমে
শূন্য জীবন
সবকিছু জেনে
তবু না বোঝার অভিনয়ে
তারা যায় চলে
দুজনে দুপথে
ফেরে না তো তারা
আর এ জীবনে।
হৃদয়ের আকুল অন্বেষণ
না বোঝার অভিনয়ে
ছিল কি কোনো ভ্রম!
কাহিনীশূন্য একাকী নারী
একা চলা হতাশ পুরুষ
শৈশব সারল্যে
একা একা খেলা করে
অনন্ত প্রাঙ্গণে।