Wednesday, May 31, 2023

असर : म्हारी पैली राजस्थानी कविता




 असर 

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रेत दिनूगै सूं 

रात रै छेकड़लै पोर तांई 

रंगत बदळै। 


सूरज रै  सागै  रवै 

सोनै बरणी संगत पावै 

आखै दिन 

तपै-बळै


चाँद रै  सागै  रमै 

सगळी रात    

ठंडक पावै  

ठंडक बरसावै 


झरणा बगै जद डूंगरां सूं 

उजळी रंगत  

ठंडै, मीठै पाणी सूं   

सगळां री तिरस मिटावै      

पूगै जद मैदानां मांय 

नदी रै सरूप मांय 

बो ही पाणी गूगळो हुय जावै  

झरणै रो पाणी खुद री 

मिठास गंवाय  


सोन-चिड़कली उड़ै जद 

खुलै आभै  मांय 

आजादी रो गावै गीत 

जद होय जावै बंद 

पिंजरै  मांय 

भूल जावै- सगळा गीत


रजनी छाबड़ा 




Tuesday, May 30, 2023

बो ही है सूरज




 बो ही है सूरज 

रोशनी रूप बदले है नित 


बे  ही  नदियां ,  बे  ही झरने 

पाणी रे बगणों रा ढब -ठौर l

बदले है नित 


बो ही है, म्हारी जिंदगी 

रोज़ाना 

पण रोको न थारी चाल 

कोसिस करो 

नित, नुवी राह खोजै ताणी

अण नुवी मंज़िल ताईं


रजनी छाबड़ा 

बहुभाषीय कवयित्री अर अनुवादिका

वही है सूर्य 

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सूर्य का  स्वरूप वही है 

प्रकाश बदलता रहता है नित 


वही हैं नदियाँ, वही झरने 

पानी के वेग का अंदाज़ 

बदलता रहता है नित 


वही है हमारी ज़िंदगी 

दिन-प्रतिदिन 

पर कदम थामो नहीं 

प्रयत्नशील रहो 

नित नयी राह

तलाशने के लिए 

और नए आयाम 

खँगालने के लिए /

रजनी छाबड़ा 

थूं सुण रैयी है कांई?मां !

   थूं सुण रैयी है कांई?मां !

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मां ! थूं केई बार कैवती
बबली, थूं ईती अमुझनी क्यूं है 
की तो बोल्या कर
मन दरूजो खड़का
कदै तो सबदां रै खोजां खोल ।
अबै म्हैं बोलण लागयी  
थूं ई सुणबा नै नीं है

भाव-चींत रा जिका बीज
थूं छिड़कगी म्हारै मन-आंगणै,
कौल है म्हारा
इण ढब ई बधता रैसी ।
सीधै सबदां भाखूं ली
निरमळ नदिया ज्यूंइण ढाळै ई
बैवती रैसी थारी मन री सीख-धार !
म्हारो अबोलो मून
अबै बोलण लागयो  है
 थूं सुण रैयी है कांई ? मां !



Friday, May 12, 2023

महसूस किया है मैंने

 महसूस किया है मैंने

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तुझको देखा नहीं 

महसूस किया है मैंने 

अनछुए स्पर्श से 

सांसों में जिया है मैंने


इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अभी अभी लिखी एक नज़म


फख्त नज़रों से दूर रहने से

कभी दिल से दूर रहा है कोई


ख़ामोश लब रहें, आँखे बोलती है 

हाल ए दिल बयाँ करने से मज़बूर रहा है कोई


तेरी याद में खाली गया न दिन कोई 

यह सिलसिला रातों को भी थाम सका है कोई


नम आँखों से तुझे याद करता हैं हरदम कोई 

यादो की रवानी रोक सकता है कभी कोई


रजनी छाबड़ा

Wednesday, May 3, 2023

बात सिर्फ इतनी सी : श्री राम शरण अग्रवाल जी की पाठकीय प्रतिक्रिया

 



 श्री राम शरण अग्रवाल जी की  पाठकीय प्रतिक्रिया


जीवन को अनुभव से अनुभूति तक जीने की अभिव्यक्ति का स्पर्श शब्दातीत होता है और सुश्री रजनी इसे इतनी सहजता से कहती हैं कि उसका एहसास हम जैसों के मन में जीवंत रहता है: ओस के गिरने की आवाज नहीं होती, हिमखंड के गलने में स्व का विलय होता, विषाद नहीं!

इनकी रचना से इस सबकुछ के लिए इनका आभारी हूं।

सादर

राम शरण अग्रवाल


मेरी अनुदित कृति SWAYAMPRABHA : श्री राम शरण अग्रवाल जी की पाठकीय प्रतिक्रिया

 मित्रों , आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ मेरी नवीनतम अनुदित कृति SWAYAMPRABHA पर मेरे सुधि मित्र श्री राम शरण अग्रवाल जी की पाठकीय प्रतिक्रिया/

स्वयंप्रभा' मिली।
आभारी हूँ आपका आपके स्नेह भाव के लिए।
भारत में भारतीय विरासत के जीवंत रहने का एक निर्णायक कारण है संवाद की सहजता। बुद्ध से तुलसी तक यह परंपरा साहित्य का श्रृंगार बन गयी। मीरा, कबीर,बिहारी ने इसे नए आयाम दिए। प्रस्तुत रचना ने, कविताओं ने मुझे भाव विभोर किया है,उसमें अभिव्यक्ति की सहजता, मनोभावों का प्रवाह, अंत: स्पर्श बन जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक की प्रकृति और प्रस्तुति तथा अनुवाद में यह सब कुछ अक्षुण्ण है।
मानस के उद्धरण कहीं न कहीं मुझे स्वनामधन्य अज्ञेय का स्मरण कराते हैं, उनकी पंक्ति है " विगत हमारे कर्मों का लक्ष्य नहीं है परंतु उसकी अनिवार्य पृष्ठभूमि तो है।"
यदि ऐसा नहीं होता तो न " Path" होता और ना ही " The Earth"
यह भी शाश्वत है कि " They have been shown as victorious; but ultimately, they are being conquered by our moral attributes."
पुस्तक के आमुख से।
यह तो हमारा प्राण तत्त्व है।
आभार रचनाकार का।
आमुख मुझे प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री के एक शीर्षक की याद दिलाता है ' दुखवा कासे कहूँ सजनी": मेरा विनीत भाव यह है कि ऐसे आमुख रचनाकार,रचना और पाठक के बीच सुगंध और वायु की तरह संचार संवाद करते हैं। यह मुझे प्रिय है।
The Sky gives us a most relevant message that of Jatayu Vriti.
एक सोच जो परिवार से राष्ट्र तक के जीवन को जीवंत रखती रही है।
परिवर्तन के नाम पर हम स्वयं पर प्रहार कर बैठते हैं, मानो
" All of them abruptly
Reached a region
That was totally
Devoid of vegetation."
- Swaymprabha
एक पाठक का सादर कृतज्ञता भाव से धन्यवाद स्वीकार करें।
सादर
राम शरण अग्रवाल
( Unedited clipping sent by him to me on messenger)
राम शरण अग्रवाल
( Unedited clipping sent by him to me on messenger)
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All reactions:
Meethesh Nirmohi, Bulaki Sharma and 1 other

Monday, May 1, 2023

प्रस्तावना : बात सिर्फ इतनी सी


 प्रस्तावना : बात सिर्फ इतनी सी 

सपनों का वितान और यादों का बिछौना/ नहीं रहता इनसे अछूता/ मन का कोई भी कोना/  

जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ और यादों के मधुबन हमारी अमूल्य निधि हैं/ रिश्तों की गरिमा, अपनों का सानिध्य, अस्तित्व की पहचान और सौहार्द पूर्ण  सह-अस्तित्व यही तो ताने -बाने हैं हमारे सामाजिक परिवेश के/ यदि यही सामजिक ताना -बाना तार-तार होने के कगार पर हो, कवि का संवेदनशील मन अछूता कैसे रह पायेगा/ यही अनुभूतियाँ कलमबद्ध करने का प्रयास किया है, अपनी काव्य-कृति 'बात सिर्फ इतनी सी' के माध्यम से/

बचपन से लेकर उम्र के आख़िरी पड़ाव तक का सफर, बहुआयामी चिंताएं, अन्याय, उत्पीड़न, नगरीकरण का दबाव, अपनी माटी की महक, जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठा, संस्कारों के प्रति आस्था, अबोले बोल और आकुलता ऐन्द्रिय धरातल पर कुछ बिम्ब बनाते  हैं/ इन्हे शब्दों का रूप दे कर उकेरा है/ 

जो दूसरों के दर्द को 

निजता से जीता है 

भावनाओं और संवेदनाओं को 

शब्दों में पिरोता है 

वही कवि कहलाता है 

यही दायित्व निभाने की कोशिश की है, अपनी रचनाओं के माध्यम से/ इन कविताओं का मूल्यांकन मैं अपने सुधि पाठकों पर छोड़ती हूँ/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/

रजनी छाबड़ा 
बहु-भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 

Tum Likha Mt kro: Lakshay

 तुम लिखा मत करो

तुम खुद कविता हो,,,,

जीने के लिए

बहती सरिता हो,,,


जब भी देखा हूँ तुम्हें

शब्द उगने लगते हैं

नज़्मों में जज़्बात मचलते हैं

हर  एहसास मोंगरे सा महकता है

तुम लिखा मत करो,,,


मेरी नज़्मों को साँस देती हो

हर्फ़ दर हर्फ़ तुम बहती हो

मेरी उलझनों में 

जीती जागती गीता हो

तुम लिखा मत करो,,,


मेरे स्पंदन में खुद को ढूंढो

 जज्बातों के दरिया में मुझे पढ़ो

 मेरे एहसासों में जीती हो,

मेरी यादों में जगमगाती हो

तुम लिखा मत करो,,,


एहसास हों या जज़्बात हों

तुम्हारे संग

शब्द अर्थ खोने लगते हैं

तुम मेरी अप्रितम कला मोनालिसा हो

तुम लिखा मत करो,,,


लक्ष्य@myprerna