Sunday, July 30, 2017

मेरी हिन्दी कविताएं

श्रीगंगानगर से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित त्रैमासिक पत्रिका सृजन कुञ्ज के प्रकाशक आशु कृष्ण जी, अतिथि संपादक महोदया व् सम्पादकीय टीम का हार्दिक आभार, महिला लेखन विशेषांक में मेरी चुनिंदा कविताओं को शामिल करने के लिए/ यह उपलब्धि मेरी ख़ुशी को और भी बढ़ा रही हैं क्योंकि मेरा ससुराल पक्ष श्रीगंगानगर से है / सन 1996 से मेरा नाता है इस शहर से, परन्तु वहां के साहित्यिक  जगत में यह मेरी पहली दस्तक है/

रजनी छाबड़ा 
Extending my heartiest gratitude to the Editor and team of Srijan kunj. It's still more a matter of joy for me that it is published from Sriganganagar and my in law family is deeply rooted in Sriganganagar

Wednesday, July 12, 2017

तुम्हारे नयन

तुम्हारे नयन 

तुम्हारे नयन 
जानते हैं 
मुस्कान की भाषा 
चेहरे से 
दिल का हाल 
पढ़ने का हुनर 
कुछ तो जादुई है 
तुम्हारी चम्पई सूरत 
और मूमल सरीखी सीरत में 
ओ! मेरी प्रियतमा ------

तुम जानती हो सब 
परायों को अपना बनाने 
का सम्मोहन मंत्र 

कितना ही चाहूँ मैं 
होश में रहना 
पर तुम जानती हो 
पल छिन में 
खुद में समेट  लेने 
का करतब 
तुम 
केवल तुम नहीं हो 
तुम से ही 
मेरी  पहचान 
और मेरी दुनिया की शान 
ओ! मेरी प्रियतमा ------
तुम हँस दो
तो
मुस्कुराती है मेंरी
समूची दुनिया

तुम्हारी कोकिला सी
सुमधुर कुहुक
शीतलता बरसाती है
मेरे हृदय की तपिश पर

तुम रूठो गर
लगता है
थम जाएंगी मेरी साँसे

मेरी सांसों की सुरक्षा
तो
अब तुम्हारी आखों के
रक्तिम डोरों के
हवाले है/


थम जावे सांसां ; मूल राजस्थानी काव्य कृति  -रवि पुरोहित
हिंदी अनुकृति   ; रजनी छाबड़ा 

Saturday, July 8, 2017

दिल का तो मालूम नहीं, ज़हन अभी जवान है
या खुदा! तेरी रहमत से इसकी शान है/