Friday, August 28, 2009

लम्हा लम्हा ज़िन्दगी

मैं लम्हा लम्हा ज़िन्दगी
टुकडों मैं जी लेती हूँ
कतरा कतरा ही सही
जब भी मिले
जीवन का अमृत
पी लेती हूँ
वक्त के सागर की रेत से
अंजुरी मैं बटोरे
रेत के कुछ कण
जुड़ गए हैं
मेरी हथेली के बीचों
बीच
उन्ही
रेत के कणों
से सागर
एहसास
संजों
लेती हूं
मैं लम्हा लम्हा जिन्दगी
टूकडों मैं जी लेती हूँ
कतरा कतरा ही सही
जब भी मिले
तेरे
नह

का अमृत
पी लेती
हूँ