Thursday, September 3, 2009

मेरी
ज़िन्दगी के आकाश पे
इन्द्रधनुष सा
उभरे तुम
नील गगन सा विस्तृत
तुम्हारा प्रेम
तन मन को पुलकित
हेरा भेरा कर देता
खरे सोने सा सच्चा
तुम्हारा प्रेम
जीवन मैं
आस विश्वास के
रंग देता
तुम्हारे
स्नेह की
पीली ,सुनहली
धुप मैं
नारंगी सपनों का
ताना बाना बुनते
संग तुम्हारे पाया
जीवन मैं
प्रेम की लालिमा
सा विस्तार

सपनो से
सजा
संवरा
अपना संसार
बाद
तुम्हारे
इन्द्रेध्नुष के और
रंग खो गए
बस, बैंजनी विषाद
की छाया
दूनी है
बिन तेरे ,मेरी ज़िन्दगी
सूनी सूनी
है

सहमी सहमी

मौत
जब बहुत करीब से
आ कर गुज़र
जाती है
दहशत का
लहराता हुआ
साया छोड़ जाती है
सहमी सहमी सी
रहती हैं
दिल की धड़कने
ज़िन्दगी की बस्ती को
बियाबान सा
छोड़ जाती है.

खामोश

जुबां
मैं भी रखती हूँ
मगर खामोश हूँ
क्या दूँ
दुनिया के
सवालों के
जवाब
ज़िन्दगी जब ख़ुद
एक सवाल
बन कर रह गई


यादों के साये मैं

बेकरारी के मौसम मैं
तनहा करार कहाँ पायें
चलें तेरी यादों के साए
सुकून की बयार पायें

गिरवी

करबद्ध
सर
झुकाए
सिकुचा ,सिमटा सा
खड़ा था वेह
झरोखे से
विकीर्णित
होती
किरणों के पास
अपनी कलाकृति के आगे

कैनवास दर्शा रह था
क्षितिज छूने की आस मैं
उनमुक्त उड़ान
भरते विहग
और सामने पर कटे
पाखी सा
घायल
एहसास लिए
वेह कलाकार
गिरवी
रेख चुका था
अपनी अनुभूतियाँ
कल्पनाएँ
,संम्वेद्नाएं
अपनी कला के
सरंक्षक को