Sunday, August 16, 2009

रिश्ता

मन और आंखों
के बीच
गहरा रिश्ता है
मन का नासूर
आँखों से
अश्क बन
रिश्ता है

बेगाने

घेर की बातें
जब निकली घेर से
इन के अफसाने
बन गए
मेरे अश्क
अब मेरे नही
छलके ज्यों ही आँख से
यह बेगाने बन गए




चिंगारी

दफ़न हुई
यादों की राख मैं
क्यों सुलग जाती है
चिंगारी सी
ज़िक्र होता है
जब भी तेरा
जाने अनजाने
नही थमते आंसूं
फिर किसी बहाने