मन और आंखों
के बीच
गहरा रिश्ता है
मन का नासूर
आँखों से
अश्क बन
रिश्ता है
घेर की बातें
जब निकली घेर से
इन के अफसाने
बन गए
मेरे अश्क
अब मेरे नही
छलके ज्यों ही आँख से
यह बेगाने बन गए
दफ़न हुई
यादों की राख
मैंक्यों सुलग जाती है
चिंगारी सी
ज़िक्र होता है
जब भी तेरा
जाने अनजाने
नही थमते आंसूं
फिर किसी बहाने