Saturday, February 8, 2025

सिमटदे पर

 सिमटदे  प

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पहाड़, समंदर, उचियाँ इमारतां 

अणदेखी कर सारियां रुकावटां

अज़ाद उड्डण दी ख़्वाहिश नु 

आ गया हे 

अपणे आप ठहराव 


रुकणा  ही न जाणदे जो कदे 

बंधे बंधे चलदे हुण ओही पैर  


उमर दा आ गया हे ऐसा मुक़ाम 

सुफ़ने थम गए 

सिमटण लगे हेन पर  

नहीं भांदे हुण नवे आसमान 


 बंधी बंधी रफ़्तार नाल 

बेमज़ा हे ज़िंदगी दा सफ़र 

 अनकहे  हरफ़ां नु 

क्यूँ न आस दी कहाणी दे देवां 

रुके रुके कदमा नु 

क्यों न फेर रवानी दे देवां /


रजनी छाबड़ा 


सूटकेस

 मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त  कवि व् चिंतक  डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम SUITCASE का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/


सूटकेस
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मैं ख़ुशी से भरपूर था
अपने शोख़ रंग के साथ और अचम्भित भी
विवाहोत्सव के दौरान, मैं भरा रहूंगा
पोशाकों और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों से
यह सूटकेस विवाह के अवसर के लिए ही था


विवाह के शुभ दिन
सूटकेस की खुशी का ठिकाना न था
पोशाकों और आभूषणों से भरपूर
थिरक रहा था कक्ष में
और तब, यहाँ वहां
अंत में ठहराव पाया ससुराल के घर में


एक व्यक्ति , जोकि उस महिला का पति है
झगड़ता है उस से बात-बेबात
वह अंदर जाती है
मुझे उठाती है और भर देती है
मुझे अपने ज़रूरी सामान से
और, अरे! वह तो घर से बाहर निकल रही है

पति मुझे पकड़ लेता है
ले जाता है घर के अंदर जबरन

औरत ने झपटा मारा उसके हाथ पर
और बाध्य किया उसे मुझे छोड़ने के लिए
मैं असमंजस में था , क्या मैं
भीतर की राह लूँ या बाहर की


एक दिन, मैंने महसूस किया
पति का जानवरों जैसे बेरहम बर्ताव
औरत को मैंने खामोशी से पड़े देखा
और पति समेट रहा था
उसके शऱीर को मुझ में
और धकेलता हुआ ले गया मुझे /

हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा