Thursday, April 18, 2024

जे मैंकु रोक सकें : सिरायक़ी में मेरी कविता

सिरायक़ी में मेरी पहली कविता 

जे मैंकु रोक सकें

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जे मैंकु रोक सकें, रोक घिन 

मैं हवा दे झोंके वांगु हाँ  

ख्यालां दी पतंग वाकण 

बारिश दी पलेठी बूंदा वाकण 

सूरज दी मधरी धुप्प  

चन्दरमा दी ठंडक वाकण 


मैं पिंजरे च कैद नही रैहवना 

खुला असमाँण सद्दे देवन्दा मैंकु 

 उच्ची उडारी वास्ते तयार हाँ मैं 


रजनी छाबड़ा 

10. 35 

18/4/2024