Wednesday, September 16, 2009

उल्फत

नींद को पंख लगे कभी
कभी पंखों को नींद आ गयी
बेताबी मैं सुकून कभी
कभी सुकून पे
बेताबी छा गयी
सुर्ख उनीदी आँखों से
तारे गिनने की रस्म
यही उल्फत अब
हमें रास आ गयी