Saturday, October 17, 2009

जाने कब

बेखुदी
के आलम मैं
ख़ुद को
यूँ पुकारती हूँ
जैसे तुम
बुला रहे हो मुझे
जाने कब उतरेगा
यह जूनून मेरा
कब आएगा
होश मुझे