Wednesday, January 26, 2022

असहज


असहज 
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इन दिनों 
उम्र के ठहरे पड़ाव पर 

ज़िन्दगी की चाल 
है सहज 
फिर यकायक 
क्यों हो जाते हैं 
हम असहज 

शायद इसलिए महज 
कि एक अर्से  से 
कुछ नया 
नहीं रचा 
ढर्रे पर चल रही 
ज़िन्दगी में 
कुछ भी 
करने को नहीं बचा 

@ रजनी छाबड़ा