Tuesday, December 14, 2021


 


आदरणीय वरिष्ठ प्रख्यात साहित्यकार मेवाड़ रतन देवकिशन राजपुरोहित जी के विचार मेरे  काव्य संग्रह ' पिघलते हिमखंड' के बारे में सभी सुधि पाठकों के साथ साझा करते हुए हर्षित हूँ/  गत रविवार , मेरे  सद्य  प्रकाशित काव्य संग्रह 'आस की कूंची' के लोकार्पण के अवसर पर जब आप मेरे बीकानेर स्थित निवास पर पधारे, मैंने अपने २ पूर्व प्रकाशित काव्य संग्रह '  होने से न होने तक' व् पिघलते हिमखंड भी भेंट किये/

आज 'पिघलते हिमखंड ' पर उनकी पाठकीय प्रतिक्रिया प्राप्त करना मेरा सौभाग्य है/

पिघलते हिमखंड 
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गद्य लेखन और पद्य में बहुत अंतर है।पद्य में लय का होना आवश्यक तत्व है वह चाहे तुकांत हो या अतुकांत।फिर पद्य में वह क्षमता है कि कम शब्दों में बहुत बड़ा संदेश दिया जा सकता है।

मेरे सामने एक पद्य की पुस्तक पिघलते हुए हिमखंड रजनी छाबड़ा की है।इसे रात्रि को ही  पढ़ लिया था।पुस्तक में मार्मिकता के साथ साथ उपदेश भी गहरे तक चोट करते हैं।

काफी है शीर्षक में एक ख्वाब, खामोश लब ओर पैबंद के सहारे सब कुछ कह दिया गया है।

मन कभी कहीं नहीं टिकता।मन चलायमान है, ठीक बनजारों की तरह कभी यहां कभी वहा और कभी कहा।मन उन्मुक्त रूप से विचरण करता है तन से दूर जा कर,मन का सफर निरंतर जारी रहे इसे बहुत शानदार तरीके से परोसा गया है।

वीराना एक जबरदस्त पीड़ा है।मार्मिक है।जाने वाले जिंदगी की कैद से मुक्त हो जाते हैं।पीछे रह जाता है वीराना।जिसे तब तक जीना है निरर्थक तब तक जिंदगी की कैद से मुक्ति न मिले।बहुत खूब लिखा है।

सारी कविताओं पर कुछ कह देना पाठक के साथ अन्याय होगा वह फिर पुस्तक को पढ़ने की जहमत नहीं उठाएगा।

शानदार कृति के लिए बधाई। शुभाकांक्षि

देकिरापु

Monday, December 13, 2021


आदरणीय वरिष्ठ प्रख्यात साहित्यकार मेवाड़ रतन देवकिशन राजपुरोहित जी के विचार मेरे सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ' आस की कूंची' के बारे में सभी सुधि पाठकों के साथ साझा करते हुए हर्षित हूँ/

 

आस की कूंची से

देकिरापु

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रजनी छाबड़ासभी सुधि पाठकों के साथ कविता के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है और वे लंबे समय से स्वांत सुखाय लिखती रही हैं।सुनाती रही हैं और सुनती रही हैं।उनकी कविताएं ही ऐसी हैं कि उनको पढ़ना अपने आप में आनंद विभोर कर देने वाला है।यही कारण है कि उनके प्रशंसकों ने  मांग की ओर उनकी तीन कृतियों का प्रकाशन हो गया।

आस की कूंची से शीर्षक कविता संग्रह पढ़ने  बैठा तो पड़ता ही गया कब कितना समय  बीता पता ही नहीं चला।

एक महिला की कविताओं से रूबरू होना महिला जगत की अबखाइयो और वास्तविकता के निकट जाने जैसा लगा।इनकी कविताओं में आदर,प्रेम,विछोह,नारी की दशा और दिशा का दिग्दर्शन होता है।एक महिला का नाम राजभाषा और उसका अंगूठा लगाना वास्तव में नारी की शैक्षिक स्थितियों का वर्णन है वहीं उनका बेगाने कविता में अपनी ही तस्वीरों में बेगाने नजर आना एक गहरी पीड़ा को दर्शाता है।सांस लेने में और जीने में बहुत फर्क है में उन्होंने अश्कों को पीने तक की बात कहदी याने दर्द को पी जाना।प्रकट न होने देना।वे यमराज को भी तब तक रुकने का अनुरोध अपनी कविता में करती हैं क्योंकि जिंदगी के कुछ पेचीदा काम सुलझाने हैं।

कहने को तो इस पुस्तक पर बहुत कुछ कहा जा सकता है।छोटी छोटी मार्मिक रचनाओं में इन्होंने मर्म को बहुत ही सलीके से प्रकट किया है ठीक उसी प्रकार जेसे  नाविक के तीर।

कवियत्री अंग्रेजी की विदुषी हैं।अनेक कार्य इनके नाम के साथ जुड़े हुए है ऊपर से तुर्रा यह कि ये आकाशवाणी पर महिलाओं के कार्यक्रमों की बहुत लम्बे समय तक वाचक रहीं है फिर अंक ज्योतिष की भी बड़ी ज्ञाता है।कहने का तात्पर्य ये वन इन आल हैं।

रजनी छाबड़ा निरंतर कलम की कारीगरी यश अर्जित करें।

शुभाकांक्षी

देकिरापु


 आस की कूंची से

देकिरापु

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रजनी छाबड़ा कविता के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है और वे लंबे समय से स्वांत सुखाय लिखती रही हैं।सुनाती रही हैं और सुनती रही हैं।उनकी कविताएं ही ऐसी हैं कि उनको पढ़ना अपने आप में आनंद विभोर कर देने वाला है।यही कारण है कि उनके प्रशंसकों ने  मांग की ओर उनकी तीन कृतियों का प्रकाशन हो गया।

आस की कूंची से शीर्षक कविता संग्रह पड़ने बैठा तो पड़ता ही गया कब कितना समय बिता पता ही नहीं चला।

एक महिला की कविताओं से रूबरू होना महिला जगत की अबखाइयो और वास्तविकता के निकट जाने जैसा लगा।इनकी कविताओं में आदर,प्रेम,विछोह,नारी की दशा और दिशा का दिग्दर्शन होता है।एक महिला का नाम राजभाषा और उसका अंगूठा लगाना वास्तव में नारी की शैक्षिक स्थितियों का वर्णन है, वहीं उनका बेगाने कविता में अपनी ही तस्वीरों में बेगाने नजर आना एक गहरी पीड़ा को दर्शाता है।

 

 कवयित्री व् अनुवादिका रजनी छाबड़ा से नीलम पारीक का संवाद

दिनांक - 15 दिसंबर 2021 बुधवार,शाम -07:00 बजे से 08:00 बजे तक

https://www.youtube.com/watch?v=lzAYR6ovtKs

आप उपरोक्त YouTube लिंक को क्लिक कर और जनसरोकार मंच टोंक 

को subscribe कर कार्यक्रम से जुड़ सकते है और अपने कमेंट भी लिख सकते हैं।

Friday, December 3, 2021

*समय से सवाल करती आस की कूंची ।

 सभी सुधि पाठकों को सूचित करते हुए हर्षित हूँ  कि मेरा तृतीय हिंदी काव्य संग्रह 'आस की कूँची ' से इंडिया नेटबुक्स द्वारा प्रकाशित हो चुका है; इन आशय की सूचना मुझे इंडिया नेटबुक्स के प्रबंधक डॉ. संजीव कुमार जी से प्राप्त हुई/ अब लेखकीय प्रतियां मिलने के लिए प्रतीक्षाबद्ध हूँ/

 आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ प्रख्यात कवि व् कथाकार  राजेंद्र जोशी जी के विचार मेरे इस काव्य संग्रह के बारे में / 

 

*समय से सवाल करती  आस की कूंची ।

     कविता में  समय के साथ उसका स्वरूप, कथ्य , भाषा- शैली और प्रतिबद्धता बदलाव आता रहा हैं। समय के साथ समय और समाज से भी प्रभावित होती रही है कविता, यह बदलाव उचित भी है ।
 कविता का समकालीन दौर संवाद से भरा है । इस समय की कविता  प्रभावशाली होने के कारण कविताओं में आम आदमी के साथ गहरा रिश्ता बनाती हैं ।
   कवि - कर्म कठिन होता जा रहा है । समकालीन कविता आम आदमी की वेदना को अभिव्यक्त करती है ।
      जब भी कविता में नारी विमर्श एवं उसकी वेदना की बात की जाएगी रजनी छाबड़ा की कविता की गंभीरता को रेखांकित किया जाएगा । छाबड़ा की कविताओं में सरसता है । 
     आस की कूंची की कविताओं को पढ़ते हुए उनकी काव्य क्षमता का परिचय मिलता है, वे मूलतः अग्रेंजी की कवयित्री व् अनुवादिका हैं, परन्तु हिन्दी कविता में समसामयिक विषयों को भी बेबाक़ अभिव्यक्त करने का हुनर रखती है ।
     रजनी छाबड़ा की कविता में नारी वेदनाओं की पीड़ा, रिश्तों की कसौटी, प्रेम और अपनापन का एक अनूठा संगम है । उनकी कविता परम्परा भंजक नहीं हैं । करूणा  और मूल्य उनकी इन कविताओं में विद्यमान है । माँ, बेटी-बेटा और अपनों के दृश्य इनकी कविताओं में देखकर पाठक कवि से आत्मीयता का रिश्ता बनाता है ।
    अपने शहर के प्रति अनुराग, विश्वास, रिश्ते सहेजना, आधुनिक पीढ़ी, हिम्मत और टूटते सपनों को खुशियों से भरने जैसे मूल्यों के प्रति कवयित्री का आग्रह रहा है/ कोरोना काल में शब्दों की दोस्ती के साथ जीने का सफल प्रयास कोई व्यक्ति किस तरह करता है जो अपने आप में उपलब्धि है ।
रजनी छाबड़ा की कविताएं प्रचलित फार्मूले से अलग सामने खड़ी मौत को थमने, गैरो से भी शिकायत दर्ज नहीं करती, कवयित्री बीती कहानी बनना पसंद  नहीं करती बल्कि उम्मीद का दीपक जलाती है/ सतरंगी खुशियां बिखेरतीं हैं /
 रेत की दीवार सी जिंदगी पर उनकी यह कविता हौसला देती है:
*रेत की दीवार*
जिंदगी रेत की दीवार 
जमाने में 
आँधियों की भरमार 
जाने कब ठह जाये
यह सतही दीवार
फिर भी क्यों जिंदगी से 
इतना मोह,इतना प्यार
यह बात सही है  कि हिन्दी कविता मुखर होने के साथ-साथ बहुत तेजी से प्रगतिशील सोच के साथ  अपना मुकाम बना रही है । 
  आज मैं जब इस संग्रह से गुजर रहा हूँ तो ऐसा लग रहा है, जैसे आदमी सब कुछ भूलते हुए भी खुद के भीतर लौट जाना चाहता है । तभी रजनी छाबड़ा की कविता पाठक से सवाल करती है:-
 *बेगाने*
जिन आँखों में 
तैरा करते थे सपने 
अब उन आँखों में 
बस , वीराने नज़र आते हैं 
देखते हैं जब
अतीत की तस्वीरें 
हम खुद को ही 
बेगाने नज़र आते हैं ।

इस कविता संग्रह में कवयित्री अपने अनुभवों की व्यंजना के साथ ही  इन रचनाओं में नये बिम्बों और नये प्रतीकों के कारण संप्रेषणीय की समस्या से मुक्त नज़र आती है,  इसलिए संग्रह  पाठक के साथ आत्मीयता का रिश्ता बनाता है ।
 कवयित्री  रचना प्रक्रिया में सहजता के कारण पाठकों के समक्ष विषय-वस्तु को सरलता से प्रस्तुत करती है ।
    रजनी छाबड़ा की यह कविताएं समय से सवाल करती है कि उसके दर्द को कोई तो महसूस करे। 
मैं रजनी छाबड़ा के नये कविता संग्रह के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ  ।

*राजेन्द्र जोशी*
कवि - कथाकार 
9829032181