Monday, November 30, 2009

SAAJAN KI DEHRI PER

साजन की देहरी पर
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कईं सावन,कईं बसंत,गए गुजर
तय करने में,बचपन से
यौवन तक की डगर
कली से पल्वित,कुसुमित  होंने का सफ़र

हाथों में सुहाग की मेहंदी रचाए
माथे पर सिंदूरी बिंदिया सजाये
धानी चुनरिया ओढ़
बाबुल की गलियाँ,पीछे छोड़
अपनाया ज़िन्दगी का नया मोड़

साजन की देहरी पर रखते ही पाँव
कंगना खनके झनझन
बज उठी पायल रुनझुन
इन्द्रधनुषी सपने बसे,पलकों की छाँव
चाह बस यही अब
आयें ज़िन्दगी में कितने भी पड़ाव
साथ न छूटे कभी साजन का
हो चाहे ज़िन्दगी की सुबह,चाहे शाम
हर पल बस तेरा ही ख्याल
हर पल बस तेरा ही नाम



रजनी छाबड़ा 

Sunday, November 15, 2009

nikhree nikhree

निखरी निखरी
ओस में नहाने के बाद
शबनमी धुप में जब
अधखिली कली अपना चेहरा
सुखाती है
कायनात निखरी निखरी
नज़र आती है
रजनी छाबरा

Thursday, November 12, 2009

mn ki khulee seep main

मन की खुली सीप में
ज़िन्दगी के सागर में
गिरती हैं बूँदें अनेक
ओर छा जाती है
एक हलचल
इस हलचल में
मन की खुली सीप में
गिरती हैं सिर्फ एक बूँद ऐसी
जो संजोई जाती है ता उमर
प्यार के एक सव्चे मोती सी
रजनी छाबरा

Wednesday, November 11, 2009

kaash!


 सांझ के धुंधलके में
अतीत की कड़ियाँ पिरोते
सुनहले खवाबों की
जोड़ तोड़ में मगन
तनहा थका बोझिल मन
दिल में उभेरता
बस एक ही अरमान
काश!वह अतीत
बन पता मेरा वर्तमान
रजनी छाबरा

Tuesday, November 10, 2009

MUKAMMAL KITAAB

मुक्कमल किताब
अधजगी रातों का ख्वाब हो गए
तुम नेरी मुकम्मल किताब हो गए
आस,विस्श्वास,मिला,जुदाई
गीत,ग़ज़ल.प्यार,तकरार
तुम सभी भावों का सार हो गए

तुम मेरा आईना हो गए
बेमतलब सी ज़िन्दगी का मायना हो गए
पलकों पे खुशियों की झलक
ख्यालों में हर पल महक
हंसी में उन्मुक्त पाखी की चहक
झेरनों का संगीत,अनकही प्रीत
पंखों की नींद,नींद के पंख
तुम हकीकत,तुम्ही ख्वाब हो गए
खामोश हैं लब,तुम मेरे अल्फाज़ हो गए
तुम मेरी मुकम्मल किताब हो गए.
rajni

Monday, November 9, 2009

PREHRI

प्रहरी
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आँख भर आयी
निगाह गहरी
और गहरी हुई
एक सागर प्यार का
उमड़ आया
अंतस के अछोर क्षितिज
तभी जगा मन में
यह भय
तिरोहित न हो जाये
खुली आँख का स्वपन
और बस
झुक गयी पलकें
किस खजाने की
भला,यह प्रहरी हुई


Sunday, November 8, 2009

Tanhaa

मेले में अकेले
निगाहों के आखिरी छोर तक
जब बैचैन निगाहे तलाशती है तुम्हें
और तुम कहीं नज़र नहीं आते आस पास
और भी गहरा जाता हैं,मेले में अकेले
भीड़ में,तनहा होंने का एहसास.

Saturday, November 7, 2009

BANJARA MAN

जब बंजारा मन
ज़िन्दगी के किसी
अनजान मोड़ पे
पा जाता है
मनचाहा हमसफ़र
चाहता है,कभी न
रुके यह सफ़र
एक एक पल बन जाये
एक युग का और
सफ़र यूं ही चलता रहे
युग युगांतर

Friday, November 6, 2009

लोकतंत्र


लोरी---एक राजस्थानी लघुकथा
फुटपाथ पर जीवन बितानेवाली एक गरीब औरत,भूखे बालक को गोद में लिए बैठी थी.भूखे बालक की हालत बिगड़ती जा रही थी.
थोड़ी दूरी पर,बरसों से जनता को सुंदर,सुंदर,मीठे मीठे सपने दिखने वाले नेताजी भाषण बाँट रहे थे.
भाषण के बीच में बालक रो दिया.माँ ने कह,"चुप,सुन,नेताजी कितनी मीठी लोरी सुना रहें हैं." नेताजी कह रहे थे,"मैं देश से गरीबी-महंगाई मिटा दूंगा.देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा,घी दूध की नदियाँ बहेंगी
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."
यह सुन कर खुश होती हुई माँ ने सुख समाचार सुनाने के लिए,बालक को झकझोरा.बालक भूख से मर चुका था.
लेखक:श्री लक्ष्मीनारायण रंगा
अनुवाद :रजनी छाबड़ा 





लोकतंत्र

एक निर्वाचित सदस्य ने दूसरे से पूछा,"तुम्हे कितने वोट मिले? दूसरे ने फट से जवाब दिया,"मुझे वोट मिलते नहीं, मैं तो वोट ले लेता हूँ, वोट मांगना मैं हराम समझता हूँ"
यह कहता कहता, वह हँस रहा था.मालूम नहीं किस पर.वोटरों पर ?चुनाव पर? लोकतंत्र पर ?
राजस्थानी लोक कथा
लेखक:श्री लक्ष्मी नारायण रंगा
अनुवादिका :रजनी छाबड़ा .

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कैसा विचलन

कैसा विचलन
विस्तृत धरा का
हर एक कोना
कभी न कभी
प्रस्फुटित होना
कंटीली राहों से
कैसा विचलन
सुनते हैं
काँटों में भी है
फूल खिलने का चलन


रजनी छाबड़ा

Thursday, November 5, 2009

LORI : Rajasthani Story by L. K. Ranga "Hindi & English Tranversion by Rajni Chhabra

लोरी---एक राजस्थानी लघुकथा
फुटपाथ पर जीवन बितानेवाली एक गरीब औरत,भूखे बालक को गोद में लिए बैठी थी.भूखे बालक की हालत बिगड़ती जा रही थी.
थोड़ी दूरी पर,बरसों से जनता को सुंदर,सुंदर,मीठे मीठे सपने दिखने वाले नेताजी भाषण बाँट रहे थे.
भाषण के बीच में बालक रो दिया.माँ ने कह,"चुप,सुन,नेताजी कितनी मीठी लोरी सुना रहें हैं." नेताजी कह रहे थे,"मैं देश से गरीबी-महंगाई मिटा दूंगा.देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा,घी दूध की नदियाँ बहेंगी
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."
यह सुन कर खुश होती हुई माँ ने सुख समाचार सुनाने के लिए,बालक को झकझोरा.बालक भूख से मर चुका था.
लेखक:श्री लक्ष्मीनारायण रंगा
अनुवाद :रजनी छाबड़ा 


LULLABY
 A destitute woman, dwelling on foot-path, was sitting, holding the hungry child in her lap. Condition of the child was worsening.

Not far away, a leader, very apt in art of showing public enchanting, sweet dreams, was delivering a speech.

The child started crying during speech of leader. Mother told him, " Be quiet and listen. How sweet is lullaby of our leader! Leader was saying, " I will eradicate poverty and dearness from our country and turn it again into the golden sparrow, Rivers of ghee and milk will flow; nobody will die of starvation...."

Pleased with this speech, mother  shook the child to narrate him this good news. The starving child had already breathed his last.

Monday, November 2, 2009

TERE INTEZAAR MAIN

तेरे इंतजार में
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आ,तूं,लौट आ
वरना  में यूं ही
जागती  रहूँगी
रात रात भर
मिटाती रहूँगी
लिख लिख के
तेरा नाम
रेत पे
और  हर सुबह
सुर्ख उनीदी आँखों से,
नींद से बोझिल पलकें लिए
काटती रहूँगी
कैलेंडर से
एक ओर तारीख
इस सच का सबूत
बनाते हुए, कि
एक और रोज़
तुझे याद किया,
तेरा नाम लिया
तुझे याद किया
तेरा नाम लिया.