मेले में अकेले
निगाहों के आखिरी छोर तक
जब बैचैन निगाहे तलाशती है तुम्हें
और तुम कहीं नज़र नहीं आते आस पास
और भी गहरा जाता हैं,मेले में अकेले
भीड़ में,तनहा होंने का एहसास.
निगाहों के आखिरी छोर तक
जब बैचैन निगाहे तलाशती है तुम्हें
और तुम कहीं नज़र नहीं आते आस पास
और भी गहरा जाता हैं,मेले में अकेले
भीड़ में,तनहा होंने का एहसास.
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