Wednesday, January 15, 2025

 जड़ों से नाता 

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बस्ती में रह कर भी 

लगता वीराना है 

मन में अभी भी 

गाँवों की यादों का 

आशियाना है 


सन सन बहती 

ठंडी हवा  

अमराइयों में

कोयल की कूक 

नदिया का 

स्वच्छ , शीतल जल 

बहता कलकल 

याद कर के 

मन होता आकुल 


चूल्हे की 

सौंधी आंच पर  

राँधी गयी दाल 

अंगारो पर सिकी 

फूली -फूली रोटियां 

बेमिसाल 

नथुनों तक पहुँचती खुशुबू 

भड़का देती थी भूख 


शहरी ज़िंदगी की 

उलझनों में व्यस्त 

दिन भर की थकान से पस्त 

दो कौर खाना हलक से 

नीचे उतारने से पहले 

कई बार ज़रूरत रहती है 

एपीटाईज़र की 


बच्चे खाना खाते हैं 

टी वी में आँखें गढ़ाए 

उन्हें परी देश की कहानियां 

अब कौन सुनाये 


ए सी और कूलर की हवा 

नहीं है प्राकृतिक हवा की सानी 

खुली छत पर सोना मुमकिन नहीं 

नहीं देख पाते अब 

तारों की आँख मिचौली 

चँदा की रवानी 


बढ़िया होटल में 

खाना आर्डर करते हुए 

अब भी तुम मंगवाते हो

धुआंदार 'सिज़लर '

तंदूरी रोटी 

मक्खनी दाल 

दाल -बाटी चूरमा 

मक्की की रोटी 

सरसों का साग 

मक्खन , छाछ 

धुंए वाला रायता 

याद है तुम्हे अभी भी 

इन का ज़ायका  



रोज़ी रोटी की जुगाड़ में 

कहीं भी बसर करे हम 

नहीं टूट सकता जड़ों से नाता/



2. वही है सूर्य 

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सूर्य का स्वरूप वही है 

प्रकाश बदलता रहता है नित 


वही हैं नदियाँ, वही झरने 

पानी के वेग का अंदाज़ 

बदलता रहता है नित 


वही है हमारी ज़िंदगी 

दिन-प्रतिदिन 

पर कदम थामो नहीं 

प्रयत्नशील रहो 

नित नयी राह

तलाशने के लिए 

और नए आयाम 

खँगालने के लिए /




 


3. असर 

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रेत सुबह से लेकर 

रात के आख़िरी प्रहर तक 

कई रंग बदलती 


सूरज के संग रहती 

सुनहरी रंगत पाती 

पूरा दिन 

तपती -सुलगती 


चाँद के संग रहती 

पूरी रात 

ठंडक  पाती 

ठंडक बरसाती     


  झरना बहता जब पहाड़ों से 

  उजली रंगत लिए 

 शीतल, मीठे  जल से 

  सबकी प्यास बुझाये 

  

पहुंचता जब मैदान में 

नदी के स्वरूप में 

वही पानी गंदला हो जाये 

झरने का पानी 

अपनी मिठास गंवाए 


सोन -चिरैय्या उड़ती जब

खुले आसमान में 

आज़ादी के गीत गुनगुनाये 

क़ैद हो जाये जब पिंजरे में 

सभी गीत भूल जाए/

- रजनी छाबड़ा


(सिराइकी में मेरी कविता ) PART 2

21. मैं मनमौजी

22.  मैडा  वसंत

23. किवें भुला सकदे हाँ

24.  चाहत 

25. मन दी  पतंग 

26. तेडे इंतज़ार वेच 

27. काफ़ी हेन 

28. बंजारा मन 

29. आपणी मिट्टी

30. मुक़म्मल ज़िंदगी 

31. कौण परवाह करदा हे 

32. रिश्ता

33. गहरा राज़ 

 34. एह चाहत

35.  बंदगी 

36.  निखरी निखरी 

37. आस दा पंछी 

38. आज़ाद 

39. नवीं पछाण 

40. फैशन 



21. मैं मनमौजी 

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 मैं मनमौजी 

मैडे नाल किया होड़ पतंग दी 

मैं पँछी खुले आसमान दा 

सारा आसमान 

आपणे पनखां नाल नपिया 

डोर पतंग दी 

पराये हथां वेच 

उडारी आसमान वेच 

जुड़ाव  ज़मीन नाल /


22.   मैडा  वसंत

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वक़त ने जेड़्हे जखमा तें 

मल्हम लगायी 

मौसम ने 

उनहा कुं  हरा करण दी 

रसम दुहराई 


मैडे  दर्द दी  

ना  कोई शुरुआत 

ना कोई अंत 

मुरझाये जखमां दा 

दोबारा हरा थीवणा 

इहो ही है 

मैडा  वसंत /




23. किवें भुला सकदे हाँ

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असां भुल सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे नॉल 

साडे सुख दे संमे 

लगाये कहकहे 


किवें भुला सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे दुख़ वेच 

वहाये हंजु बिना कहे /


24.  चाहत 

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जे चाहत 

हिक गुनाह हे 

क्यूँ झुकदा हे 

आसमान ज़मीन ते 


क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन 

सूरज दे गिर्द /



 25. मन दी  पतंग 

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पतंग वांगु शोख़ मन 

आपणी चंचलता ते सवार 

नपणा चाह्न्दा हे 

पूरे आसमान दा  फ़ैलाव  

पहाड़, समंदर , उचियाँ इमारतां 

अन्वेखी कर के 

सब रुकवाटां 

क़दम अगे ही अगे वधावे 


ज़िंदगी दी थकान 

दूर करण वास्ते 

मुन्तज़र हाँ असां 

मन दी पतंग ते 

सुफ़नायें दे आसमान वास्ते 

जिथे मन घेन सके 

बेहिचक, सतरंगी उडारी   


पर क्यों पकडावां डोर 

पराये हथां वेच 

हर पल ख़ौफ़ज़दा 

रहवे मन 

रब जाणे,  कद कटीज़ वंजे 

कदों लुटीज़ वंजे 


शोख़ी नाल भरिया

 चंचल मन वेखे 

ज़िंदगी दे आईने 

पर सच दे धरातल ते 

टिके कदम ही देंदे 

ज़िंदगी कुं मायने /



26. तेडे इंतज़ार वेच 

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आ, तूं मुड़  आ 

वरना, मैं इवेन ही

जागदी राहंसा 

सारी सारी रात  

मिटांदी राहसां 

लेख़ लेख़ के 

टेडा नां 

रेत ते 

ते हर सवेरे 

सुर्ख़ उनिदरी  अनखां  नाल 

नींदर तुं भारी पलकां नाल 

कटदी राहंसा 

कलेंडर तुं 

हेक होर तरीक़ 

आपणे सच्च दा  सबूत बणा  के कि 

हक होर रोज़ 

तेंकु याद किता 

तेडा नाम घिदा /



27.  काफ़ी हेन 

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हेक ख़्वाब 

बेनूर अखां वासते  

हेक आह 

चुप -चुपीते होठां वासते 

हेक पाबन्द 

तार तार जिग़र 

सीवण  वासते 


काफ़ी हें 

इतने समान 

मेडे जीवण दे वासते /





28. बंजारा मन 

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जद बंजारे  मन कुं 

ज़िंदगी दे किसे 

अनजान मोड़ ते 

मेल वेंदा हे 

मन-माफिक हमसफ़र 


जी चाहंदा हे, कदे वी 

न ख़तम थीवे ए सफ़र 

हेक  हेक पल बण वंजे 

हक जुग दा , ते 

सफ़र इवेन ही जारी रहवे 

जुगां जुगां तहीं/


29. आपणी मिट्टी

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बस्ती वेच रेह के 

जंगल दे वास्ते 

मन दा मोर 

कसमसांदा हे 


ऐस पेंडू मन दा 

क्या करां 

आपणी मिट्टी दी 

खुशबू वास्ते तरसदा हे 


किवें भुला देवां 

आपणे पिंड कुं 

रिश्तियाँ दी 

ख़ुश्बू वाली गलियाँ वेच 

उथे आपणेपण दा 

बदळ वरसदा हे /



30. मुक़म्मल ज़िंदगी 

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सारी उमर दा साथ 

नेभ वैंदा हे 

बस हेक ही 

पल वेच 


बुलबुले वेच 

उभरण वाले 

अक्स दी उमर 

होन्दी हे 

बस हेक ही 

पल दी /


31. कौण परवाह करदा हे 

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 कौण परवाह करदा हे अंधेरियाँ दी 

हेक बडे तूफान तुं बाद 


हर ग़म छोटा थी वैंदा हे 

ऊस तुं वडे गम दे  बाद 


 

32. रिश्ता

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मन ते अखां 

दे वेच 

गूढ़ा रिश्ता हे 


मन दा नासुर 

अखां तुं 

हंजु बण 

रिसदा हे /



33.   गहरा राज़ 

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सुफ़ने किसे दी 

इज़ाजत नाल नहि आंदे 

न ही सुफनियां ते 

 किसे दा पहरा 


बिना पंखां दे 

किवें पहुंचा देंदे 

सतरंगी दुनियां वेच 

राज़ हे एह डाढा गहरा /



 34. एह चाहत

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 एह चाहत मैडी तैडी 

जे एह सोहणा सुफ़ना हे 

नींदर खुले न कदे मैडी 

जे एह हक़ीकत हे 

नींदर कदे न आवे मैंकु /



35.  बंदगी 

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एहसास  कदे वी मरदे नहीं 

एहसास ज़िंदा हेन 

तां ज़िंदगी हे 


वक़्त दी झोली वेच समेटे 

पल पल दे एहसास 

रब दी बंदगी हेन /


36.  निखरी निखरी 

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सर्द रातां दे बाद 

ओस वेच नहावण दे बाद 

जद अधखिली कली 

शबनमीं धुप वेच 

अपणा चेहरा सुखांदी हे 

क़ायनात निखरी निखरी 

नज़र आवन्दी हे /



37. आस दा पंछी 

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मन 

हेक आस दा पंछी 

न क़ैद करो हिंकु 

क़ैद थीवण वास्ते 

किया इंसान दा ज़िस्म  

घट हे/



38.  आज़ाद 

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झरने वांकु कलकल 

पंछियां वांकु चहक 

आज़ाद उडारी 

चंदनी हवा 

सावणी फ़ुहार 

इहो टैडी 

हँसी दी पछाण 



मोतियाँ वाले घर दा 

दरवाज़ा खोल चा 

नक़ली  मुलकना  

छोड़ चा/



 

39. नवीं पछाण 

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अँधेरे कु 

आपणे आप  वेच समेटे 

जिवें दीवा बणांदा हे 

अपनी रोशन पछाण 



ईवेन ही  तुसा 

अथरू समेटे रखो 

अपणे वेच 

दुनिया कु डियो 

बस मुसकान  



आपणी अनाम ज़िंदगी कुं 

ईवेन डियो नवीं पछाण /



40. फैशन 

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जे जिसम दी नुमाईश ही 

फैशन हे 

असां  डाढे अभागे हां 


जानवर ऐस दौड़ वेच 

असां तुं अवल्ल निकल गए/


रजनी छाबड़ा 



रजनी छाबड़ा 



रजनी छाबड़ा 






 








  


मैडा वसंत

 मैडा  वसंत (सिराइकी में मेरी कविता )

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वक़त ने जेड़्हे जखमा तें 

मल्हम लगायी 

मौसम ने 

उनहा कुं  हरा करण दी 

रसम दुहराई 


मैडे  दर्द दी  

ना  कोई शुरुआत 

ना कोई अंत 

मुरझाये जखमां दा 

दोबारा हरा थीवणा 

इहो ही है 

मैडा  वसंत /


रजनी छाबड़ा 

मैं मनमौजी

 मैं मनमौजी (सिराइकी में मेरी कविता )

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 मैं मनमौजी 

मैडे नाल किया होड़ पतंग दी 

मैं पँछी खुले आसमान  दा 

सारा आसमान 

आपणे पनखां नाल नापिया 



डोर पतंग दी 

पराये हथां वेच 

उडारी आसमान वेच 

जुड़ाव  ज़मीन नाल /



रजनी छाबड़ा 

ज़रा सोचो (सिराइकी में मेरी कविता )

 ज़रा सोचो (सिराइकी में मेरी कविता )


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दूजियाँ कुं ठोकरां मारण वालयों 

ज़रा सोचो हेक पल वास्ते 

पराये दर्द दा एहसास 

चुभसी तुहानकु वी 

जख़्मी थी वेसण 

तुहाडे हि पैर जदूं 

दुजिया नु ठोकरा मारदे मारदे/


रजनी छाबड़ा 

दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )


दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )

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 थींदी हे कदे 

फूलां तुं 

कंडियां वरगी चुभन 

कदे कंडिया वेच 

फुल खिड़दे ने 


बहार वेच विराणा  

कदे विराणे  वेच  

बहार दा एहसास 

एह दिल दे मौसम 

ईवेन बेमौसम 

बदलदे रेह्न्दे /