Saturday, July 30, 2011

यह कैसा सावन

यह कैसा सावन




सावन के झूलों के संग

हिलोरे लेती मैं और

मेरी सतरंगी चुनर के रंग

कहाँ खो गए



अबके क्यों बर्फ सी

जमी हैं सावन में 



एहसास भी बर्फ सी

सफ़ेद चादर ओढ़े

सो गए

Thursday, July 28, 2011

UNMUKT


झरनों की कलकल 
पाखियों का कलरव
उन्मुक्त उडान
संदली बयार
सावनी फुहार

यही तुम्हारी 
हँसीं की पहचान

मोतियों वाले घर का
दरवाज़ा खोल दो
ओढी हुई मुस्कान 
छोड़ दो