Thursday, December 11, 2014

नासूर

नासूर

मन और् आँखों
 के बीच
गहरा  रिश्ता है

मन का नासूर
आँखों से
अश्क बन
रिसता है/

रजनी छाबड़ा 
कस्तूरी मृग
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कस्तूरी की गंध
खुद मैं समेटे
भ्रमित भटक रहा था
कस्तूरी मृग

आनंद का सागर
खुद में  सहेजे
कदम बहक रहे थे
दसों दिग़


Friday, November 7, 2014

अकेली ही

अकेली ही चली थी
मंज़िल की  तलाश को,

लोग साथ चलने लगे,
क़ाफ़िला  बढ़ता गया

सफर का लुत्फ़ आने लगा
हौसला भी बढ़ता गया


रजनी छाबड़ा

Thursday, October 30, 2014

बहने दो जीवन को

फ़लसफ़े के फेर में 
मत उलझाओ मति को 
शब्दों के फेर में 
मत उलझाओ गति को 

बहने दो जीवन को 
निर्मल निर्बाध सरिता सा 
कहने दो मन के भावों को 
सीधी सरल कविता सा 

Friday, October 24, 2014

 मेरी दीवाली

तम्मनाओं की लौ से
रोशन किया
एक चिराग
तेरे नाम का
लाखों चिराग
तेरी यादों के
ख़ुद बखुद
झिलमिला उठे


रजनी छाबड़ा 

Tuesday, October 21, 2014



पहचान 

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अंधकार को 


अपने दामन मैं समेटे 

ज्यों दीप बनाता है 

अपनी रोशन पहचान 


यूं ही तुम,

अश्क़ समेटे रहो 

खुद मैं 


 दुनिया को दो 

सिर्फ मुस्कान 

अपनी अनाम ज़िन्दगी को 

यूं दो एक नयी पहचान 



रजनी छाबड़ा 

Thursday, October 16, 2014

तेरे बिना

तेरे बिना
दिल यूं
बेक़रार रहता है

हर दिन के शुरू
होते ही
दिन ख़त्म होने का
इंतज़ार रहता है

रजनी छाबड़ा 

Wednesday, October 15, 2014

हम बिन

यूं भी क्या जीना
कि जीना
 इक मज़बूरी लगे

क्यों न कर जाएँ
कुछ ऐसा
कि हमारे
जाने के  बाद
यह दुनिया
हम बिन
अधूरी लगे


रजनी छाबड़ा

Monday, September 8, 2014

मधुबन.

मधुबन.
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कतरा
कतरा
नेह के
अमृत से
बनता पूर्ण
जीवन कलश
यादों की
बयार से
नेह की
फुहार से
बनता जीवन
मधुबन.

रजनी छाबड़ा 

Thursday, August 14, 2014

आज़ादी के मतवालों को नमन और आप सब को स्वतन्त्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई

जो जान देते हैं
वतन की राह पर
छोड़ जाते है
क़ुरबानी के नक्श ऐ पां

जिन पर चल कर
आने वाली पीढियां
क़ायम रख सके
आज़ाद वतन
आज़ाद ज़हाँ



आज़ादी के मतवालों को नमन  और आप सब को स्वतन्त्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई 

Tuesday, July 8, 2014

समकालीन सृजन को समर्पित त्रैमासिक 'शोध दिशा ' का फेसबुक कविता अंक (अप्रैल ---जून 2014) की प्रति आज डाक द्वारा प्राप्त हुई/मेरी भी ३ कविताएं  साँझ के अँधेरे मैं,अपनी माटी ,फ़ूल आर कलियाँ                 इस संकलन मैं शामिल की गयी हैं/

फेसबुक कविता अंक अपना आप मैं एक अनूठा व् सराहनीय प्रयोग है/एक अरसे से मेरे कईं मित्रगण कवि व् मैं फेसबुक पर कविताएँ पोस्ट करते रहे हैं,परन्तु इस तरह से संकलन मैं रचनाओं को स्थान मिलना एक सुखद अनुभव है/

आभारी हूँ  माननीय डॉ गिरिराजशरण अग्रवाल (संपादक)डॉ लालित्य ललित (अतिथि संपादक ) व् डॉ मीना अग्रवाल (प्रबंध संपादक )की /इस नवाचार के लिए आप सबको साधुवाद /


रजनी छाबड़ा 

Sunday, July 6, 2014

तुम  ख़ुद पर विश्वास करो

दुनिया तुम पर विश्वास करेगीं 

Thursday, February 6, 2014

यादों के ख़जाने

तेरी यादों के ख़जाने ने,
कर दिया है
इस क़दर मालामाल


तन्हाई के लम्हों मैं भी
नहीं है
 तन्हा होने का मलाल

रजनी छाबड़ा