Thursday, December 11, 2014

कस्तूरी मृग
========

कस्तूरी की गंध
खुद मैं समेटे
भ्रमित भटक रहा था
कस्तूरी मृग

आनंद का सागर
खुद में  सहेजे
कदम बहक रहे थे
दसों दिग़


No comments:

Post a Comment