Thursday, July 8, 2021

वीराँगना

वीराँगना   
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आज की नारी, अबला नहीं 
जो विषम परिस्थितियों से मान ले हार 
ठान लेती है, जब जूझने की 
मदद करता है उसकी 
दुनिया का पालनहार 

पति घर में कोविड -ग्रस्त क़्वारंटाइंड 
सासु माँ को कोविड का तीव्र आघात 
इन सब का मूक दर्शक, घर में बालक अबोध 
जिसने  देखा है अब तक  ज़िंदगी का प्रभात 
क्या करे अब घर की बहू - रानी 
परीक्षा की इस विकट घड़ी में 
ख़ुद ही स्थिति सँभालने की ठानी 

एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं 
निज वाहन में सासु माँ को साथ ले 
भटकती फिर रही अस्पताल -दर -अस्पताल 
कोविड के इस भयानक दौर में 
उपलब्ध नहीं सहजता से कोई भी बैड  
दो बार बेरंग लौटाए जाने  के बाद 
बिना हिम्मत हारे  
अब तीसरे अस्पताल में 
उलझ रही है मेडिकल स्टाफ से 
बेकार गए हैं अब तक मिन्नत और मनुहार 

अंतत कुछ अपनों के सहयोग  
 परमात्मा की आशीष  
और स्वयं  के मनोयोग से 
कामयाब हो जाती है 
माँ को भर्ती करवाने में 

दिन से निकली, देर रात तक लौट आती हैं घर 
फिर सूचना पाता है उस से , ननद का परिवार 
जो रवाना हो जाता है दूसरे शहर से तत्काल 
और सम्भलने लगता है उसका बिखरा -बिखरा संसार 


आपदा की इस घड़ी में 
बहू फ़र्ज़ निभाती हैं बेटी और बेटे जैसा 
खुद परेशानी  झेल कर भी 
 नहीं आने देती विपदा 


वीरांगना तो बस वीरांगना ही है 
वक़्त और दौर चाहे जो भी हो 

ज़िंदगी के इस रणक्षेत्र में 
युद्ध भूमि बदली है 
कर्म भूमि नहीं 

कर्मयोगी कभी नहीं हारते 
कंटीली राहों को रौंदते 
गुलाब जैसी शान से 
घर -आँगन हैं महकाते 


रजनी छाबड़ा 
8 /7/ 2021 










  

इन दिनों

                   इन दिनों 

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ज़िन्दगी  की आपाधापी में

                     उलझा इन्सान , इन दिनों 

विषम परिस्थितयों  से उंबरने की 

स्वयं तलाशता हैं राह 

कोविड के इस दौर में 

 नहीं रह  सकता किसी के सहारे 

मनोबल  ही उसका सच्चा सहारा 

उसकी अचूक ढाल 

जिस से  दुःख करता हैं किनारा

रजनी छाबड़ा