बेआब
ग़र रोने से ही
बदल सकती तक़दीर
यह ज़मीन बस
सैलाब होती
गर अश्क़ बहाने से ही
होती हर ग़म की तदबीर
यह नम आँखें
कभी बेआब न होती
ग़र रोने से ही
बदल सकती तक़दीर
यह ज़मीन बस
सैलाब होती
गर अश्क़ बहाने से ही
होती हर ग़म की तदबीर
यह नम आँखें
कभी बेआब न होती