Thursday, September 17, 2009

एहसास

ऐ हवाओं
ऐ फिजाओं
मुझे मेरे होने का
एहसास दिलाओ

साँस ले रही हूँ मैं
अपने जिंदा होने का
यकीन नही
क्या ज़िन्दगी के खिलाफ
यह जुर्म
संगीन नही

एक पल मैं जी लेना
सौ जनम
हर धडकन मैं
संगीत की धुन

हर स्पंदन मैं
पायल की रुनझुन
रेशमी आँचल का
हौले से सरसराना
निगाहों से निगाहों मैं
सब कहना
बिन
पंखों
के
आकाश
नापना
पूर्णता का एहसास
सब खवाबों की
बात हो गया
रीते लम्हे
रीता जीवन
जीवन तो बस
बनवास हो गया

सौंधी
यादों
के उपवन
फिर
महकाओ
ऐ हवाओं
ऐ फिजाओं 

मुझे मेरे होने का
अहसास
दिलाओ



































मन की पतंग

पतंग सा शोख मन
लिए चंचलता अपार
छूना चाहता है
पूरे नभ का विस्तार
पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं
अनदेखी कर
सब बाधाएं
पग आगे ही आगे बढाएं

ज़िंदगी की थकान को
दूर करने के चाहिए
मन की पतंग
और सपनो का आस्मां
जिसमे मन भेर सके
बेहिचक,सतरंगी उड़ान

पर क्यों थमाएं डोर
पराये हाथों मैं
हर पल खौफ
रहे मन मैं
जाने कब कट जाएँ
कब लुट जाएँ

चंचलता,चपलता
लिए देखे मन
ज़िन्दगी के आईने
पर सच के धरातल
पर टिके कदम ही
देते ज़िंदगी को मायेने

आख़िरी छोर तक

निगाहों के
आख़िरी छोर तक
बैचैन निगाहें
ढूँढती हैं तुम्हे
और तुम
कही नहीं नज़र
आतए आस पास
तब और भी
गहरा जाता है
मेले मैं अकेले
भीढ़ मैं
तनहा होने
का एहसास