Thursday, January 9, 2025

मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ डरदी हां मैं / पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं


 



मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ  डरदी हां मैं / पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ  डरदी हां मैं /

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मुक़्क़मल थीवण तुं 

क्यूँ  डरदी हां मैं 

शायद हिक वजह नाल 

क्योंकि वेखदी रई हां कि 

पुण्या दा चद्रमा 

सारी दुनिया कुं 

चांदनी नाल सरोबार करण तुं  बाद 

नहीं रेवन्दा पूरा 

हौले हौले अंधेरी रातां दी तरफ़ 

सरकदा वैंदा हे 


भरे-पुरे ख़ुशी दे पलां दे बाद 

मैडी खुशियां दा चंद्रमा 

मदरे मदरे 

क्या वधण लगसी 

मसया दी तरफ़ 


उदास हनेरी रातां दे बाद 

चानण वापस आसी 

जिवें अमावस तुं  बाद 

चंद्रमा दुबारा हौले हौले 

चांदनी कुं आपणे  वेच समेटदा हे

वडणा घटणा 

एह सिलसिला 

ईवेन ही चलदा हे/



पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं 

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पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं ?

शायद इस लिए कि 

देखती आयी हूँ 

पूनम का चाँद 

सकल विश्व को 

चांदनी से सरोबार करने के बाद 

पूर्णता खोने लगता है 

धीमे -धीमे अंधियारी रातों की ओर 

सरकने लगता है 


भरपूर खुशी के लम्हों के बाद 

मेरी खुशियों का चाँद भी 

धीमे -धीमे 

क्या अमावस की ओर  

अग्रसर होने लगेगा ?


उदास अधियारी रातों के बाद 

 उजास वापिस आएगा 

जैसे कि अमावस के बाद 

चाँद वापिस धीमे धीमे 

चांदनी को 

आग़ोश में समेटता है 

बढ़ना, घटना 

यह सिलसिला 

यूं ही चलता है/


रजनी छाबड़ा

असर

असर 

****


रेत सवेर तुं  लेके 

रात दी आख़री घड़ी ताईं 

कई रंग बदलदी 


सूरज दे नाल रेहवंदी 

सुनहरी रंगत पाँवदी 

सारी दिहाड़ी 

तपदी बलदी  

 

चद्रमा  दे नाल रेहवंदी 

सारी रात 

ठंडक पावंदी 

ठंडक वरसांदी 


झरना वैहन्दा जद  पहाड़ां तुं 

 निखरी रंगत नाल 

ठंडे, मिठे पाणी नाल 

सबदी पियास बुझांदा 


पुगदा जदूं मैदान वेच 

नदी दी शक्ल अख्तियार कर 

ओही पाणी गंदला थिया 

झरने दा  पाणी 

आपणी मिठास गंवाए 


सोन-चिड़ी उडदी जद 

खुले असमान विच 

आज़ादी दे गीत गुनगुनादी 

क़ैद थी जावें जदूं पिंजरे वेच 

सारे गीत भूल वेंदी /


सिरायक़ी में मेरी 20 कवितायें

 सिरायक़ी में मेरी कवितायें  

1. जे मैंकु रोक सकें

2. डाढा फर्क हे 

3. मन दा  क़द 

4. रेत दी दीवार 

5. जीवण दी वह 

6. तिनका तिनका 

7.  निभावणा

8. ओ  ही हे सूरज 

9. पिंजरे दा पंछी

10. पाणी वेच नूण 

11. असर 

12. मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ  डरदी हां मैं  

13. अमूझना

14चौराहा

15. तैडे बिना 

16. मन दे बंद दरवाज़े

17. वगदी नदी 

18दीवार

19. दिल दे मौसम 

20. ज़रा सोचो 


रजनी छाबड़ा 


1. जे मैंकु रोक सकें

    *************

जे मैंकु रोक सकें, रोक घिन 

मैं हवा दे झोंके वांगु हाँ  

ख्यालां दी पतंग वाकण 

बारिश दी पलेठी बूंदा वाकण 

सूरज दी मधरी धुप्प  

चन्दरमा दी ठंडक वाकण 


मैं पिंजरे च कैद नही रैहवना 

खुला असमाँण सद्दे देवन्दा मैंकु 

 उच्ची उडारी वास्ते तयार हाँ मैं 



2 .डाढा फर्क हे 

  ***********

डाढा फर्क हे 

हंजु पीवण ते 

हंजु व्हावण च 

डाढा फर्क हे 

साह घिनण ते 

जीऊंण च 



3. मन दा  क़द 

  ***********

सुफ़ने तां ओ वी देखदे हण 

जिना दियां अनखा कोणी 

किस्मत तन उना दी वी हुंदी ऐ 

जिना दे हथ कोणी हुन्दे 


हौंसले उचे होवण जे 

बैसाखियाँ नाल चलण वाले वी 

जीत लींदे  ने 

ज़िंदगी दी दौड़ 


मन दा क़द 

रख उच्चा 

क़द काठी  तां आँदी वैंदी   हे 

एह दुनिया न रहसी हमेशा 

ज़िंदगी दी इहो कहाणी हे 

रजनी छाबड़ा 



4. रेत दी दीवार 

    
ज़िंदगी रेत दी दीवार 
ज़माने च 
अंधेरियाँ दी भरमार 

रब जाणे, कैड़े वेले 
ढे पवे, एह खोख़ली दीवार 
वल क्यूँ , ज़िंदगी नाल 
इना मोह, इना पियार  


5. जीवण दी वह 

तुहाडी ज़िदगी च 
न बचे जदु कोई जागण दी वजह 
न बचे जदु कोई सोवण दी वजह 


हिंकु दुनिया दे नाम 
करो चा 
जीण दी वजह 
अपणे आप मिल वेसी 


हंजू पीवण दी आदत 
बदल वैसि 
हंजू पूंजड़ दा वल 
रास आ वैसि 
जीवण दा वल 
निखर वैसि /


रजनी छाबड़ा 

6. तिनका तिनका 

   ************

हेक  हेक तिनका 

कठा कर 

अपणे घौंसले कूँ 

सोहणा सजांदी हे चिड़ी 

कुज धागे 

कुज रूई 

कठे कर लैंदी हे चिड़ी 

घौंसले कूं 

निग़ा रखण वास्ते 

अंडे सेवण तूं बाद 

ज़िम्मेवारी 

ख़तम नहीं थिंदी 

चिड़ी दी 

आपणे लाड़लिया वास्ते 

चुग्गा कठा करदी 

उंहा दी चुंज विच पानदी  

माँ होवण दा सुख 

हासल करेंदी चिड़ी 

घौंसले तू बाहर दी दुनिया नाल 

उंहा दी जाण  पछाण करवांदी 

निक्के पँखा नाल 

खुले असमाँण वेच 

उडारी भरना सिखांदी 

ज़िंदगी दा चरखा 

इवें ही चलदा राहंदा 

बीते वक़्त दे नाल ही नाल 

चिढ़ी दी ताकत 

घटदी वैंदी 

सवेर हुंदे ई 

पंखी घेण लेंदे उडारी 

कलली पई रेहँदी 

उंहा दी माँ विचारी 

शाम पवे पंखी 

मुड़ आवनदे   

अपणे ठिकाणे 

घेण के अपणी चोंच विच 

माँ वास्ते चुग्गा -दाणे 

ईहो रिश्ता फलदा हे 

आपनेपण दी दुनिया वेच 

पियार नाल भरिया घोंसला 

खुशियां दा ठिकाणा /

रजनी छाबड़ा 


7.  निभावणा

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कुझ बन्देयाँ नु 

प्यार जतावणा  ही नहीं 

प्यार निभावणा वी आंदा ए 


कंडे लखान वारी 

छलनी कर देवण 

गुलाब दी झोली  

गुलाब अणवेखियाँ कर 

बस मुलकदा रेहँदा ए 

उंहा दे नाल/


8. ओ  ही हे सूरज 

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सूरज तां ओ ही हे  

पर रोशनी बदलदा रैहन्दा रोज़ 


ओ ही हे  दरिया, ओ ही झरने 

पर पाणी दे वगण दा वल 

बदलदा रैहन्दा रोज़ 


ओ ही हे असां दी ज़िन्दगी 

रोज़ ब रोज़ 

पर रोको ना आपणी चाल 


कोशिश ज़ारी रखो

 रोज़ नवा रस्ता लभण दी 

नवियां मंज़िला 

तलाशण  दी/


9. पिंजरे दा पंछी

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पिंजरा हि हे मैडा  घर 

हूण तकण मन कूं 

इहो समझाया 

आज़ाद उडारी भरदे 

परिंदे वेख 

अज क्यूँ मन विचलण लगया 


सारी उमर पिंजरे च कैद पंछी 

आज़ादी खातिर गिड़गिड़ाया 

बहेलिये ने तरस खा 

खोल दिता पिंजरे दा  दरवाज़ा 

पंछी ने कोशिश किती 

पंख फैला, उची उडारी भरण दी 

पर, क्या ओ  आसमान दी ऊचाई 

छू सकिया 


सहम गया 

उडदे बाज नू वेख के 

पिंजरे विच ही 

वापस रेहवण दा 

मन बणाया 


जीवण दा जो सलीक़ा 

रहिया सालों -साल 

उह कैद तों 

नहीं छुट सकिया /



10. पाणी वेच नूण 

  ***********

पाणी वेच 

नूण वरगा एहसास 

मेंकू लुभावंदा 

विखदा नहीं 

पर आपणा होवण  

जता वैंदा /



11. असर 

     ****


रेत सवेर तुं  लेके 

रात दी आख़री घड़ी ताईं 

कई रंग बदलदी 


सूरज दे नाल रेहवंदी 

सुनहरी रंगत पाँवदी 

सारी दिहाड़ी 

तपदी बलदी  

 

चद्रमा  दे नाल रेहवंदी 

सारी रात 

ठंडक पावंदी 

ठंडक वरसांदी 


झरना वैहन्दा जद  पहाड़ां तुं 

 निखरी रंगत नाल 

ठंडे, मिठे पाणी नाल 

सबदी पियास बुझांदा 


पुगदा जदूं मैदान वेच 

नदी दी शक्ल अख्तियार कर 

ओही पाणी गंदला थिया 

झरने दा  पाणी 

आपणी मिठास गंवाए 


सोन -चिरैय्या उड़ती जब

खुले आसमान में 

आज़ादी के गीत गुनगुनाये 

क़ैद हो जाये जब पिंजरे में 

सभी गीत भूल जाए/


सोन-चिड़ी उडदी जद 

खुले असमान विच 

आज़ादी दे गीत गुनगुनादी 

क़ैद थी जावें जदूं पिंजरे वेच 

सारे गीत भूल वेंदी /



12.मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ  डरदी हां मैं 

     ****************************


मुक़्क़मल थीवण तुं 

क्यूँ  डरदी हां मैं 

शायद हिक वजह नाल 

क्योंकि वेखदी रई हां कि 

पुण्या दा चद्रमा 

सारी दुनिया कुं 

चांदनी नाल सरोबार करण तुं  बाद 

नहीं रेवन्दा पूरा 

हौले हौले अंधेरी रातां दी तरफ़ 

सरकदा वैंदा हे 


भरे-पुरे ख़ुशी दे पलां दे बाद 

मैडी खुशियां दा चंद्रमा 

मदरे मदरे 

क्या वधण लगसी 

मसया दी तरफ़ 


उदास हनेरी रातां दे बाद 

चानण वापस आसी 

जिवें अमावस तुं  बाद 

चंद्रमा दुबारा हौले हौले 

चांदनी कुं आपणे  वेच समेटदा हे

वडणा घटणा 

एह सिलसिला 

ईवेन ही चलदा हे/


13. अमूझना /उदास ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )

कोण रेह सकिया हे 

इह दुनिया वेच 

हमेशा वास्ते 


फेर वी 

ऐ जिन्दड़ी 

तेडे तुं विछड़न दा  ख़याल 

क्यूँ  कर वैंदा हे बेहाल 

क्यूँ कर  वैंदा हे 

मेंकू अमूझना /




  चौराहा ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


कैड़ा रस्ता चुण्यै 

पशेमानी दे चौराहे ते खड़े 

असां नयि सोच सकदे 


अतीत दियां कुझ हसीन यादां 

कुंझ खट्टे मिठे तज़ुर्बे 

बीत गए कल नाल जुड़ाव 


अतीत दे धागियां वेच उलझे 

आपणे आज कुं नयि जी सकदे  असां 

आ गया हे उमर दा  ओ पड़ाव 

अगे वधण तुं पहले ही 

बंधी बंधी थी वैंदी हे चाल 


नहीं कठा कर  पांदे 

आवण वाले कल दी 

चुनौतियां दा  सामना 

करण दी हिम्मत 

रब जाणे, क्या भेद छुपे होवण 

आण  वाले समे वेच 


कल , अज ते कल दे 

ताने बने वेच जकड़े 

आपने आले दुवाले 

अपनें ही कमां दे जाल वेच 

मकड़ी वरगा उलझे 

मुक्ति दा रस्ता 

साकूं इ बणावणा पैसी 


बीते समयाना दे  कुंझ यादगार पल 

ज दे कुझ सुनहरी पल 

आवण वाले वक़त वास्ते कुझ जुगाड़ 

सहेज के आपणी राह -खर्ची 

अगे वधदा चल 

ओ मुसाफ़िर 

रस्ता तेंकु आपणे आप रस्ता देसी 

मंजिल तकण पहुँचण वास्ते /



तैडे बिना 

*******

तैडे बिना 

हिक़ इवें 

अमूझना रेहंदा हे 


दिन उगदे हि 

शाम ढलण दी 

उडीक रेहँदी हे / 




मन दे बंद दरवाज़े / मन के बंद दरवाज़े ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


******************************


एस तुं पेहले कि 

अधूरेपण दी क़सक 

तुहानकु चूर चूर करें 

सारी उमर हसण खेलण तुं 

मज़बूर कर देवें 

खोलो अपणे 

मन दे बंद दरवाज़े 

ते दूर कर सटो 

घुटन कुं 



दर्द दा वसेरा तां 

सभाँ दे दिल वेच हे 

दर्द नाल सभाँ दा 

पुश्तैनी रिश्ता हे 

कुझ अपणी आखो 

कुझ उंहा दी सुणो 

दर्द कुं सब मिलजुल के सहो 

एस तुं पहलां कि दर्द 

रिसदे रिसदे बण वंजें नसूर 

लगा के हमदर्दी दा मल्हम 

करो दर्द कुं कोसां दूर 


वंड घिनो 

सुख दुःख कुं 

मन कुं , ज़िंदगी कुं 

पियार दे अमृत नाल 

करो चा भरपूर 

खोल सटो मन दे बंद दरवाज़े 

ते घुटन कुं करो चा दूर /


17. वगदी नदी / बहती नदिया  (सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


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होले होले वगदी नदी 

आपणी मस्ती वेच गुनगुणादी 

मगरूर, मुलकदी 

वगदी वैंदी 


मैं हुंकु रोकिया, टोकिया 

ईतनी उतावली क्या मचि हे 

किथान वनजण  दा  इरादा हे 

किता  किसे नाल कोई वादा हे 


नदी थोड़ा झिझकी 

थोड़ा शरमायी 

समंदर नाल मिलण दी आस हे 

इयो ही मैडी रवानगी दा  राज़ हे 


मैं चेताया हुंकु 

क्या सोचिया हे तु कदे 

समंदर नाल मेल कर के  

ग़ुम थी  वैसी तैडी अपणी पछाँड़ 

तैडी अपणी मीठास 



पर उह परेम पगली ने 

ना रोकी अपणी रवानगी 

मिठास दी तासीर ग़ुम थी गयी

ख़ारे पाणी वेच मिलयां बाद 

समंदर दी आग़ोश वेच वनजण तुं बाद  

ख़तम कर दिती अपणी रवानी 

अपणी ज़िंदगानी /



 18दीवार  ( सिराइकी में मेरी कविता )

      ******


घर दे वेह्ड़े वेच 

दीवार चनीज़ वेंदी हे 

जदूं दिलां वेच 

दरार पे वेंदी हे 


बटवारे दा  दरद 

सेंहदी मज़बूर माँ 

किंदे नाल रवें 

किथे वंजे 


दीवार दे दूजे सिरे 

गूँजदी बच्चे दी किलकारी 

अगे वधंण वासते बैचैन क़दम 

ऱोक घिनदी है जबरन 


पर किया रोक सकसी 

आपणे मन दी उडारी 


मन दे पँख लगा 

घुम आउंदी हे 

दीवार दे दूजे पार 

उनींदरी रातां वेच 
  
सुफ़ने सजा के 

 देंदी हे 

अपणी  बेवज़ह ज़िंदगानी कुं 

हेक वज़ह /



दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )

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 थींदी हे कदे 

फूलां तुं 

कंडियां वरगी चुभन 

कदे कंडिया वेच 

फुल खिड़दे ने 


बहार वेच विराणा  

कदे विराणे  वेच  

बहार दा एहसास 

एह दिल दे मौसम 

ईवेन बेमौसम 

बदलदे /




रजनी छाबड़ा 

बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 








पाणी वेच नूण

 पाणी वेच नूण/ नमक सा आभास ( सिरायकी में मेरी कविता, हिंदी अनुवाद के साथ )

पाणी वेच नूण 

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पाणी वेच 

नूण वरगा एहसास 

मेंकू लुभावंदा 

विखदा नहीं 

पर आपणा होवण  

जता वैंदा /


नमक सा आभास 

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 पानी में 

नमक सा आभास 

मुझे है लुभाता 

अदृश्य रह के भी 

अपने होने का 

एहसास दिला जाता 


पिंजरे दा पंछी


सिरायकी में मेरी कविता, हिंदी अनुवाद के साथ 


 पिंजरे दा पंछी

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पिंजरा हि हे मैडा  घर 

हूण तकण मन कूं 

इहो समझाया 

आज़ाद उडारी भरदे 

परिंदे वेख 

अज क्यूँ मन विचलण लगया 


सारी उमर पिंजरे च कैद पंछी 

आज़ादी खातिर गिड़गिड़ाया 

बहेलिये ने तरस खा 

खोल दिता पिंजरे दा  दरवाज़ा 

पंछी ने कोशिश किती 

पंख फैला, उची उडारी भरण दी 

पर, क्या ओ  आसमान दी ऊचाई 

छू सकिया 


सहम गया 

उडदे बाज नू वेख के 

पिंजरे विच ही 

वापस रेहवण दा 

मन बणाया 


जीवण दा जो सलीक़ा 

रहिया सालों -साल 

उह कैद तों 

नहीं छुट सकिया /


9/1/2025


पिंजरे का पंछी 

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 पिंजरा ही है मेरा घर 

अब तक मन को था 

यही समझाया 

उन्मुक्त उड़ान लेते 

पंछी देख 

आज मन क्यों भरमाया 


ता उम्र पिंजरे में क़ैद पंछी 

आज़ादी के लिए गिड़गिड़ाया 

बहेलिये ने तरस खा पर 

खोल दिया पिंजरे का दरवाज़ा 

 पंछी ने कोशिश की 

पंख फ़ैला, ऊंची उड़ान लेने की 

पर क्या गगन की ऊंचाई 

छू पाया 


सहम गया 

उड़ते बाज़ को देख कर 

पिंजरे में ही 

वापिस बसने का मन बनाया/


जीने का जो अंदाज़ 

रहा बरसों 

उस की क़ैद से 

नहीं छूट पाया/


@रजनी छाबड़ा 

२८/१०/२०२३