Thursday, January 9, 2025

असर

असर 

****


रेत सवेर तुं  लेके 

रात दी आख़री घड़ी ताईं 

कई रंग बदलदी 


सूरज दे नाल रेहवंदी 

सुनहरी रंगत पाँवदी 

सारी दिहाड़ी 

तपदी बलदी  

 

चद्रमा  दे नाल रेहवंदी 

सारी रात 

ठंडक पावंदी 

ठंडक वरसांदी 


झरना वैहन्दा जद  पहाड़ां तुं 

 निखरी रंगत नाल 

ठंडे, मिठे पाणी नाल 

सबदी पियास बुझांदा 


पुगदा जदूं मैदान वेच 

नदी दी शक्ल अख्तियार कर 

ओही पाणी गंदला थिया 

झरने दा  पाणी 

आपणी मिठास गंवाए 


सोन-चिड़ी उडदी जद 

खुले असमान विच 

आज़ादी दे गीत गुनगुनादी 

क़ैद थी जावें जदूं पिंजरे वेच 

सारे गीत भूल वेंदी /


No comments:

Post a Comment