सिरायकी में मेरी कविता, हिंदी अनुवाद के साथ
पिंजरे दा पंछी
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पिंजरा हि हे मैडा घर
हूण तकण मन कूं
इहो समझाया
आज़ाद उडारी भरदे
परिंदे वेख
अज क्यूँ मन विचलण लगया
सारी उमर पिंजरे च कैद पंछी
आज़ादी खातिर गिड़गिड़ाया
बहेलिये ने तरस खा
खोल दिता पिंजरे दा दरवाज़ा
पंछी ने कोशिश किती
पंख फैला, उची उडारी भरण दी
पर, क्या ओ आसमान दी ऊचाई
छू सकिया
सहम गया
उडदे बाज नू वेख के
पिंजरे विच ही
वापस रेहवण दा
मन बणाया
जीवण दा जो सलीक़ा
रहिया सालों -साल
उह कैद तों
नहीं छुट सकिया /
9/1/2025
पिंजरे का पंछी
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पिंजरा ही है मेरा घर
अब तक मन को था
यही समझाया
उन्मुक्त उड़ान लेते
पंछी देख
आज मन क्यों भरमाया
ता उम्र पिंजरे में क़ैद पंछी
आज़ादी के लिए गिड़गिड़ाया
बहेलिये ने तरस खा पर
खोल दिया पिंजरे का दरवाज़ा
पंछी ने कोशिश की
पंख फ़ैला, ऊंची उड़ान लेने की
पर क्या गगन की ऊंचाई
छू पाया
सहम गया
उड़ते बाज़ को देख कर
पिंजरे में ही
वापिस बसने का मन बनाया/
जीने का जो अंदाज़
रहा बरसों
उस की क़ैद से
नहीं छूट पाया/
@रजनी छाबड़ा
२८/१०/२०२३
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