Saturday, April 20, 2024

मन दा क़द : सिरायक़ी में मेरी कविता

 

सिरायक़ी में मेरी कविता 

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मन दा  क़द 

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सुफ़ने तां ओ वी वेखदे हण 

जिना दियां अनखा कोणी 

किस्मत तां उना दी वी हुंदी ऐ 

जिना दे हथ कोणी हुन्दे 


हौंसले उचे होवण जे 

बैसाखियाँ नाल चलण वाले वी 

जीत लींदे  ने 

ज़िंदगी दी दौड़ 


मन दा क़द 

रख उच्चा 

क़द काठी  तां आँदी वैंदी   हे 

एह दुनिया न रहसी हमेशा 

ज़िंदगी दी इहो कहाणी हे 

रजनी छाबड़ा 

 18 /4/2024 

ज़िंदगी दा मक़सद ; सिरायक़ी में मेरी कविता

   ज़िंदगी दा मक़सद 

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तुहाडी अपणी ज़िंदगी च 
न रहवें जद जागण दी 
न रहवें नींदरा आवण दी वजह 

एह ज़िंदगी दुनिया दे नाम 
कर देओ 
ज़िंदा रेहवण दी वजह 
अपणे आप मिल वेसी 

हंजु पीवण दी आदत 
बदल वेसी 
हंजू पूंझण दा हुनर 
रास आ वेसी 

ज़िंदगी दा वल 
निखर वेसी 

रजनी छाबड़ा 
19 /4 /2024