Saturday, May 12, 2012

KYA TUM SUN RHEE HO ,MAA


क्या तुम सुन रही हो,माँ
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माँ, तुम अक्सर कहा करती थी
बबली, इतनी खामोश क्यों हो
कुछ तो बोला करो
मन के दरवाज़े पर दस्तक दो
शब्दों की आहट से खोला करो

अब मुखर हुई हूँ
तुम ही नहीं सुनने के लिए
विचारों का जो कारवां
तुम मेरे ज़हन में छोड़ गयी
वादा  है तुमसे
यूं ही बढ़ते रहने दूंगी

सारी कायनात में 
तुम्हारी झलक देख
सरल शब्दों की अभिव्यक्ति को
निर्मल सरिता सा
यूं ही बहने दूंगी

मेरा मौन अब स्वरित
हो गया है, माँ
क्या तुम सुन रही हो?


PRSHN CHINH


प्रश्न चिन्ह
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माँ
तेरी  कोख मैं ,सिमटी सिकुची
अपने अस्तित्व पर लगे
प्रश्न  चिन्ह से परेशान
पूछती हूँ,तुझ से एक सवाल

मैं बेटी हूँ
तो क्या अवांछित हो गयी
क्या बेटा जनमने से ही
गर्वित होती तुम?

मैं हूँ तेरा ही एक अंश
मुझे खुद से जुदा करने का ख्याल
क्या नहीं करेगा तुम्हे आहत
नहीं देगा तुम्हे मलाल?

महकते गुलाब सी गर
न बन पाऊँ,तेरे आंगन की शान
निर्मली सी बनूंगी,
तेरे आंगन  की आन

धूप छाँव
सहजता से झेलते
न आयेगी माथे पर शिकन
न करूंगी तुझे परेशान

गर मैं ही न रहूँगी
कौन कर पायेगा
भाई बहन के रिश्ते पर गर्व
बिन मेरे,कैसे मन पायेगा
भैया दूज और राखी का पर्व

कैसे होगा धरा पर
सरस्वती ,दुर्गा और
लक्ष्मी का अवतरण
बिन कन्या,कैसे होगा वरण


कोख की अजन्मी अंश के
प्रश्नों से आहत
माँ ने दी उसे दिलासा
निज आश्वासन से दी राहत

हाँ,मेरी अजन्मी अंश
वाकिफ हूँ,तेरी धडकन
तेरी करवट ,
तेरे स्पंदन से

माँ  हूँ तेरी
तुझे जनम देना,मेरा धर्म
जानती हूँ,जीवन का
बस एक ही मर्म

निज लहू से सीँचे
बेटा हो या बेटी
माँ  के लिए
दोनों एक समान

स्वस्थ,सुरक्षित जीवन
मिले तुझे,यही मेरा अरमान
सर्जन ,शक्ति ,उर्जा और
ममत्व का अवतार
तू पनपे ,अपनत्व की छावं मैं
मैं बनी रहूँ ,तेरा आधार
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