Saturday, November 2, 2013

पहचान

अंधकार को अपने दामन में  समेटे
ज्यों दीप बनाता है 
अपनी रोशन पहचान

यूं ही तुम 
अश्क़ समेटे रहो खुद में  
दुनिया को दो सिर्फ मुस्कान 
अपनी अनाम ज़िंदगी को 
यूं दो एक नयी पहचान 


रजनी छाबड़ा  


Thursday, October 31, 2013

मेरी दीवाली


 मेरी दीवाली 
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तम्मनाओं की लौ से
रोशन किया
एक चिराग
तेरे नाम का
लाखों चिराग
तेरी यादों के
ख़ुद बखुद
झिलमिला उठे


रजनी छाबड़ा 

Wednesday, August 21, 2013

वीराना


वीराना

जो छूट जाते हैंइस ज़िंदगी के क़ैद से ,पा जाते  हैं इक नयी ज़िंदगी बेजान तो वो रहते है जों जीते हैं उनके बाद न रहती है कोई उमंग न तरंग रह जाता है बस वीराना हर ख़ुशी का लम्हा भी कर जाता है उदास 


रजनी छाबड़ा 


Tuesday, August 13, 2013

आस का पंछी

आस का पंछी
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मन ,इक आस का पंछी
मत कैद करो इसको ,
कैद होने लिए ,क्या
इंसान के तन कम हैं


रजनी छाबड़ा

Wednesday, August 7, 2013

भाग मिल्खा भाग
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खेल जगत के युगपुरुष की कहानी
जिस का युगों तक ,न होगा कोई सानी


रजनी छाबड़ा 

Monday, August 5, 2013

तेरा ज़िक्र


तेरा ज़िक्र 
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वो ज़हान
मेरा नही
जहाँ
तेरी खुशबू
न हो
तेरी यादें न हो
जिक्र न हो
जहाँ तेरा
वो महफिल
मुझे रास आती नही

Sunday, August 4, 2013

आब ए हयात

मिलने लगते हैं जब
ख्याल और जज़्बात
निखरी निखरी
नज़र आती है क़ायनात
घुलने लगता हैं
ज़िंदगी मैं
आब ए हयात


सभी मित्रों को मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ


रजनी छाबड़ा 

Monday, July 8, 2013

किसे परवाह रहती है

किसे परवाह रहती है
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किसे परवाह रहती है आँधियों की
एक बड़े तूफ़ान के बाद
हर गम छोटा हो जाता है
एक उस से बड़े गम के बाद

रजनी छाबड़ा



Who cares for storms
After facing thunders in life

every grief becomes shorter
after facing bigger one.

Friday, June 21, 2013

आकाश दीप

आकाश दीप
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ज़िंदगी के लम्बे
अनजान सफ़र मैं
जब जब मन लगे भटकने
अंधियारी डगर मैं
कितना भी हो
यह मन भ्रमित
आयें ज़िन्दगी मैं
कितने भी तूफ़ान
कितने भी झंझावत
हो मन
कितना भी बदगुमाँ


सागर के बीचों बीच स्थिर
आकाशदीप से तुम
तुम हमेशा रहोगे
मेरे रहनुमा


रजनी छाबड़ा

In the long,
Unfamiliar
Journey of life

Whenever mind
Starts wandering
In dark alleys

howsoever,mind
Might be misguided

So many storms
So many thunders
Making mind so restless

Like a lighthouse
Amidst sea
You will always be
My guiding star.

Wednesday, June 12, 2013

शब्दों के फेर मैं

शब्दों के फेर मैं
मत उलझाओ गति को
फलसफे के फेर मैं
मत उलझाओ मति को

बहने दो जीवन को
निर्मल निर्बाध सरिता सा
कह  दो मन के भावों को
सीधी सरल कविता सा


रजनी छाबड़ा

Monday, June 10, 2013

हिमखंड

हिमखंड
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पिघलते हैं 
हिमखंड 
सर्द रिश्तों के 

तुम, प्यार सने 
विश्वास की 
उष्णता 
देकर तो देखो 

Saturday, June 8, 2013

गुलज़ार

गुलज़ार
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सूखे चरमराये फूल पत्ते
जो रौंदे जा रहे हैं
सब के पाँव तले

रौनक थी इनसे भी कभी
गुलज़ार की,
सुकून मिलता था किसी को
इनके साए तले


रजनी छाबड़ा 

Wednesday, June 5, 2013

शहंशाह

ख्यालों और यादों की दौलत ने ही
तो शहंशाह बनाया हैं मुझे
वरना इस मुफलिसी से भरी दुनिया में
क्या रखा है/

रजनी छाबड़ा 

Sunday, May 19, 2013

उन्मुक्त हंसी का जो झरना 
भेजा तुमने मेरे आँगन मैं 

किलकारियों की गूंज से 
खुशहांल किया घर आँगन 

शुक्र गुजार हूँ तुम्हारी ,
ए खुदा ,इस नन्हे फ़रिश्ते के लिए 

घर आँगन मैं 
यह जो नन्ही पौध 
लहराने लगी है, 
मेरे बेटे का बचपन भी 
दोहराने लगी है/


प्रिय प्रत्युष को पहले जन्मदिन की बहुत बहुत मुबारक 

रजनी छाबड़ा (  दादी माँ )

Thursday, May 16, 2013

तेरे बिना

तेरे बिना

तेरे बिना
दिल यूं
बेकरार
रहता है

दिन उगते ही
शाम ढलने का
इंतज़ार रहता है 

Tuesday, May 7, 2013

बन्दगी

बन्दगी
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एहसास कभी मरते नहीं 
एहसास जिंदा हैं 
तो ज़िंदगी है 

वक़्त के आँचल मैं सहेजे 
लम्हा लम्हा एहसास 
ख़ुदा की बन्दगी हैं 

Sunday, April 28, 2013

SUN THAT IS SWITCHED ON N OFF

SUN THAT IS SWITCHED ON N OFF

WHEN YOUR MOOD SWINGS
WHEN YOUR HEART DEMANDS
THEN U CALL ME FOR UNITING
AND WHEN YOU ARE NOT WILLING
EVEN WHEN YOU ARE NEAR THE CITY
YOU PASS BY WITHOUT MEETING ME

YOUR MOODS SWAY
BUT IT IS BINDING FOR ME
TO SWITCH ON BUTTON OF MY LIFE
ACCORDING TO YOUR MOOD
AND WHENEVER YOU INVITE
COME TO YOU,EMBEDDED WITH
ALL THE LOVE IN MY HEART

AND WHEN YOU WISH
SUPPRESSING ALL THE
TURBULATIONS OF MY MIND
LIVE IN SUCH A WAY
AS IF BOTH ARE
UNACQUAINTED MUTUALLY

IN YOUR CITY,PROBABLY
SUN OF LOVE IS APT TO
RISE AND SET
BY SWITCHING ON N OFF.



A POEM OF DR KAUNKE TRANSLATED BY ME FROM PANJABI INTO  ENGLISH 


RAJNI CHHABRA

Tuesday, April 9, 2013

सांझ के अँधेरे में


साँझ के अँधेरे में 
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साँझ 
के झुटपुट
अंधेरे मैं
दुआ के लिए
उठा कर हाथ
क्या
मांगना
टूटते 
हुए तारे से
जो अपना
ही
अस्तित्व
नहीं रख सकता
कायम
माँगना ही है तो मांगो
डूबते
हुए सूरज से
जो अस्त हो कर भी
नही होता पस्त
अस्त होता है वो,
एक नए सूर्योदय के लिए
अपनी स्वर्णिम किरणों से
रोशन करने को
सारा ज़हान

IN THE DARK DENSE EVE
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In the dark dense eve
Why to hold your hands
And ask for
Accomplishment of wish
From a meteorite
Who cannot keep intacct
Its own existence

If you wish
To have
A  boon,
Ask from
Setting sun
Who does not
accept defeat

And rises again
The very next day
To diffuse his
Golden rays .
 In the whole world.

Monday, April 8, 2013

क्षितिज़ के पास
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क्षितिज़ के पास
कर रहे हो
इंतज़ार मेरा
जहां दो ज़हान
मिल कर भी
नहीं मिलते


अधूरी है तमन्ना
अधूरी मिलन की आरज़ू
फूल,अब खिल कर भी
नहीं खिलते 

Sunday, March 31, 2013

आसमान आबी है

आसमान आबी है


आसमान आबी है
फिजाओं में बेताबी  है
जाने आज कुदरत
क्या नया गुल खिलायेगी






रजनी छाबड़ा


Sky is Neptunian
Ambience is  restless
God know,
What new mischief
Is cooking
In  mind of nature.

RAJNI छाबड़ा 

Tuesday, March 19, 2013

 पहला क़दम 
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फूलों से नाज़ुक पाँव से
ठिठक ठिठक कर
डगमगाते क़दमों से
चलने का प्रयास
पाँव ने अभी अभी तो
धरती पर टिकना सीखा है
गिरते,उठते 
लचकते संभलते
फिर चलते
ममत्व का हाथ थामे
आंखों मैं मूक अनुमोदन
 की आस
ममत्व और स्नेह से
संबल लेता
प्रयास
सफलता
 की किलकारी
पायल की रुनझुन से
गूंज उठती
घर  फुलवारी




Saturday, March 16, 2013

यादों की राख से

यादों की राख से
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दफ़न हुई यादों की राख से

क्यों सुलग  जाती है

चिंगारी सी 

ज़िक्र होता है जब भी तेरा 

जाने अनजाने 

नहीं थमते आसूं फिर 

किसी बहाने 

Wednesday, February 20, 2013

खामोश हूँ

 खामोश हूँ 
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जुबां मैं भी रखती हूँ,
मगर खामोश हूँ 

क्या दूं 
दुनिया के 
सवालों के जवाब 
ज़िन्दगी जब खुद 
एक सवाल 
बन कर रह गयी 


रजनी छाबड़ा 

Saturday, February 2, 2013

मन की तरंगे

मन की तरंगे 
सागर की लहरों सी 
गिनना मुमकिन नहीं 

Sunday, January 27, 2013

PATHIK BADAL

                                        पथिक बादल
                                      ===========
एक पथिक बादल
जो ठहरा था पल भर को
मेरे आंगन पर
अपने स्नेह की शीतल छाया ले कर
वक़्त  की बेरहम हवाओं के साथ
न जाने ज़िंदगी के
किस मोड़ पर ठहर जाये


 रह रह कर  मन में
 इक कसक सी उभर आये
काश!इक मुट्ठी आसमान
मेरा भी होता

क़ैद कर लेती इस  मैं
उस पथिक बादल को
मेरे धूप  से सुलगते आंगन मैं
संदली हवाओं का ,बसेरा होता


रजनी छाबड़ा